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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(उपसर्गस्य) उपसर्ग में विद्यमान (र:) रेफ के स्थान में (अयतौ) अयति शब्द परे होने पर (ल:) लकारादेश होता है।
उदा०-(प्र) स प्लायते। वह भागता है। (परा) स पलायते। अर्थ पूर्ववत् है।
सिद्धि-प्लायते । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक 'अय गतौं (भ्वा०आ०) धातु से वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'अयते' शब्द परे होने पर 'प्र' उपसर्ग में विद्यमान रेफ के स्थान में लकारादेश होता है। परा-उपसर्गपूर्वक में-पलायते। ल-आदेश:--
(३) ग्रो यङि।२०। प०वि०-ग्रः ६१ यङि ७।१। अनु०-र:, ल इति चानुवर्तते । अन्वय:-ग्रो रो यङि ल:।
अर्थ:-गृ इत्येतस्य धातो रेफस्य स्थाने यडि प्रत्यये परतो लकारादेशो भवति।
उदा०-स निजेगिल्यते। तौ निजेगिल्येते। ते निजेगिल्यन्ते।
आर्यभाषा: अर्थ-(ग्रः) गृ इस धातु के (र:) रेफ के स्थान में (यङि) यङ् प्रत्यय परे होने पर (ल:) लकारादेश होता है।
उदा०-स निजेगिल्यते। वह बुरी तरह निगलता है। तौ निजेगिल्येते। वे दोनों बुरी तरह निगलते हैं। ते निजेगिल्यन्ते । वे सब बुरी तरह निगलते हैं।
सिद्धि-निजेगिल्यते । यहां नि-उपसर्गपूर्वक निगरणे (तु०प०) धातु से लुपसदचरजपजभदहदशगृभ्यो भावगर्हायाम्' (३।१।२४) से धात्वर्थ निन्दा में 'यङ्' प्रत्यय है। ऋत इद्धातोः' (७1१1१००) से 'ग' के ऋकार को इकार आदेश और इसे उरण रपरः' (१११५१) से रपरत्व है। इस सूत्र से इस रेफ को लकारादेश होता है। गृ-गिर्-गिल् । धातु को द्वित्व और अभ्यास कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही द्विवचन में-निजेगिल्येते। बहुवचन में-निजेगिल्यन्ते। लकारादेशविकल्पः
(४) अचि विभाषा।२१। प०वि०-अचि ७।१ विभाषा ११ । अनु०-र:, ल:, ग्र इति चानुवर्तते। अन्वय:-ग्रो रोऽचि विभाषा ल: ।
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