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________________ पाणिनीय - अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-संज्ञायां विषये आसन्दीवदष्ठीवच्चक्रीवत्कक्षीवद्रुमण्वच्चर्मण्वती इति पदानि निपात्यन्ते । उदा०-आसन्दीवान् ग्रामः । अष्ठीवान् शरीरैकदेशः । चक्रीवान् राजा । कक्षीवान् नाम ऋषिः । रुमण्वती नाम नदी । चर्मण्वती नाम नदी । आर्यभाषाः अर्थ- (संज्ञायाम् ) संज्ञा विषय में (आसन्दीवत् ० ) आसन्दीवत्, अष्ठीवत् चक्रीवत्, कक्षीवत्, रुमण्वती, चर्मण्वती ये पद निपातित हैं। ५०० उदा०-आसन्दीवान् ग्रामः । आसन (कुर्सी) वाला ग्राम। अष्ठीवान् । अस्थि-हड्डीवाला शरीरका एक भाग । चक्रीवान् राजा । चक्रवाला राजा । कक्षीवान् नाम ऋषिः । कक्षीवान् नामक ऋषि । रुमण्वती नाम नदी । लवणवाली नदी (लूणी) । चर्मण्वती नाम नदी । चर्मण्वती नामक नदी । (लूणी) सांभर झील से निकलनेवाली । सिद्धि - (१) आसन्दीवान् । यहां 'आसन' शब्द से 'तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् (५/२/९४ ) से 'मतुप् ' प्रत्यय है। 'आसन' शब्द के स्थान में 'आसन्दी' आदेश निपातित है | 'संज्ञायाम्' (८ । २ । ११ ) से मतुप् को वकारादेश सिद्ध है । / (२) अष्ठीवान् | यहां 'अस्थि' शब्द से पूर्ववत् 'मतुप्' प्रत्यय है | 'अस्थि' शब्द के स्थान में 'अष्ठी' आदेश निपातित है । (३) चक्रीवान् | यहां 'चक्र' शब्द से पूर्ववत् 'मतुप्' प्रत्यय है । 'चक्र' शब्द के स्थान में 'चक्री' आदेश निपातित है। (४) कक्षीवान् ! यहां कक्ष्या' शब्द से पूर्ववत् 'मतुप्' प्रत्यय है । 'कक्ष्या' शब्द को सम्प्रसारण निपातित है । 'हल:' ( ६ । ४ । २) से दीर्घ होता है। (५) रुमण्वती। यहां 'लवण' शब्द से पूर्ववत् 'मतुप्' प्रत्यय है । 'लवण' शब्द के स्थान में 'रुमण' आदेश निपातित है । (६) चर्मण्वती। यहां 'चर्मन्' शब्द से 'नद्यां मतुप्' (४/२/८४ ) से 'मतुप्' प्रत्यय है। यहां 'नलोपः प्रातिपदिकान्तस्य' ( ८1२ 1७) से प्राप्त नकार लोप का अभाव और 'पदान्तस्य' (८/४ / ३६ ) से प्राप्त गत्वप्रतिषेध का भी अभाव निपातित है। . 'उगितश्च' (४/१/६ ) से स्त्रीलिङ्ग में 'ङीप्' प्रत्यय है। निपातनम् - (१०) उदन्वानुदधौ च । १३ । प०वि०- उदन्वान् १।१ उदधौ ७ । १ च अव्ययपदम् । अनु० - संज्ञायामित्यनुवर्तते । अन्वयः - संज्ञायामुदधौ च उदन्वान् इति निपातनम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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