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________________ ३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ल्यप्-आदेश: (३७) समासेऽनपूर्वे क्त्वो ल्यप्।३७। प०वि०-समासे ७।१ अनपूर्वे ७।१ क्त्व: ६१ ल्यप् १।१। स०-न नञ् इति अनञ् । अनञ् पूर्वो यस्मिन् स:-अनपूर्वः, तस्मिन् अनपूर्वे (नगर्भितबहुव्रीहि:)। अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्येति चानुवर्तते। अन्वय:-अनपूर्वे समासे क्त्व: प्रत्ययस्याङ्गस्य ल्यप् । अर्थ:-अनपूर्वे समासे वर्तमानस्य क्त्वा-प्रत्ययस्याऽङ्गस्य ल्यप्आदेशो भवति। उदा०-प्रकृत्य । प्रहृत्य । पार्श्वत: कृत्य । नानाकृत्य। द्विधाकृत्य । अनपूर्वे इति किम् ? अकृत्वा, अहृत्वा । आर्यभाषाअर्थ-(अनपूर्वे) नञ्-पूर्व से भिन्न (समासे) समास में विद्यमान (क्त्व:) क्त्वा (प्रत्ययस्य) प्रत्ययरूप इस (अङ्गस्य) अङ्ग के स्थान में (ल्यप्) ल्यप् आदेश होता है। उदा०-प्रकृत्य । प्रारम्भ करके । प्रहृत्य । प्रहार करके। पार्श्वत: कृत्य । पार्श्व से करके। नानाकृत्य । जो नाना नहीं था उसे नाना (अनेक) करके। द्विधाकृत्य । जो दो नहीं था, उसे दो करके। 'अनपूर्व' का कथन इसलिये किया गया है कि यहां ल्यप्’ आदेश न हो-अकृत्वा । न करके। अहृत्वा । हरण न करके। सिद्धि-(१) प्रकृत्य । प्र+कृ+क्त्वा। प्र+कृ+त्वा। प्र+कृ+ल्यप् । प्र+कृ+तुक्+य। प्र+कृ+त्+य। प्रकृत्य+सु । प्रकृत्य+० । प्रकृत्य।। ___ यहां प्र-उपसर्गपूर्वक डुकृञ् करणे (तना०उ०) धातु से 'समानकर्तृकयो: पूर्वकाले (३।४।२१) से क्त्वा' प्रत्यय है। कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से प्रादितत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इस नञ्-पूर्व से भिन्न तत्पुरुष समास में क्त्वा' के स्थान में ल्यप्’ आदेश होता है। हस्वस्य पिति कृति तुक्' (६।१।७०) से 'तुक्’ आगम होता है। क्त्वातोसुन्कसुनः' (११११४०) से अव्ययसंज्ञा होकर 'अव्ययादाप्सुपः' (२।४।८२) से सु' का लुक होता है। (२) पार्श्वत:कृत्य। यहां कृ' धातु से स्वाङ्गवाची, तस्-प्रत्ययान्त पार्श्वत:' शब्द उपपद होने पर स्वाशे तस्प्रत्यये कृभ्वोः' (३।४।६१) से क्त्वा' प्रत्यय है। तृतीयाप्रभृतीन्यतरस्याम्' (२।२।२१) से उपपदतत्पुरुष समारा है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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