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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-अमुना।
आर्यभाषा: अर्थ-नि) ना-आदेश करने में (मु) मु-आदेश (असिद्ध:) असिद्ध (न) नहीं होता है, किन्तु सिद्ध ही होता है।
उदा०-अमुना। उसके द्वारा। सिद्धि-अमुना । अदस्+टा। अद अ+आ। अद+आ। अमु+आ। अमु+ना। अमुना।
यहां 'अदस्' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'टा' (आङ्) प्रत्यय है। त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से अकार अन्तादेश, 'अतो गुणे' (६।१।९६) से पररूप एकादेश और 'अदसोऽसे दो म:' (८।२।८०) से अकार को उकार और दकार को मकार इस प्रकार मु’ आदेश होता है। 'आङो नाऽस्त्रियाम्' (७ १३ ११८) से उकारान्त अङ्ग से परे टा (आङ्) को ना-आदेश करने में मु' आदेश इस सूत्र से असिद्ध नहीं होता है। यदि यह मु-आदेश असिद्ध हो जाये तो उकारान्त-अभाव से ना-आदेश नहीं हो सकता है। मु-आदेश के असिद्ध होने पर जो सुपि च (७।३।१०२) से दीर्घ प्राप्त होता है, वह
सन्निपातलक्षणो विधिरनिमित्तं तद्विघातस्य' इस परिभाषा से दीर्घ नहीं होता है, अर्थात् ह्रस्व सन्निपात से ही टा (आङ्) को ना-आदेश हुआ है और वह ना-आदेश ही उस ह्रस्वत्व का विघात कर देवे, ऐसा नहीं होता है।
{आदेशप्रकरणम् स्वरितादेशः
(१) उदात्तस्वरितयोर्यणः स्वरितोऽनुदात्तस्य।४।
प०वि०-उदात्त-स्वरितयो: ६ ।२ यण: ५।१ स्वरित: १।१ अनुदात्तस्य ६।१।
स०-उदात्तश्च स्वरितश्च तौ-उदात्तस्वरितौ, तयो:-उदात्तस्वरितयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अन्वय:-उदात्तस्वरितयोर्यणोऽनुदात्तस्य स्वरितः ।
अर्थ:-उदात्तस्य स्वरितस्य च स्थाने यो यण, तत: परस्यानुदात्तस्य स्थाने स्वरितादेशो भवति।
उदा०- (उदात्तयणः) कुमार्यो, कुमार्यः । (स्वरितयण:) सकृल्ल्वाशा। खलप्वाशा।
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