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अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
४७५ उदा०-(चलोप) देवदत्त एव ग्रामं गच्छतु, स देवदत्त एवारण्यं गच्छतु । देवदत्त ही गांव जावे और वह देवदत्त ही जाल में जावे। (अहलोप:) देवदत्त एव ग्रामं गच्छतु, यज्ञदत्त एवारण्यं गच्छतु । देवदत्त ही केवल गांव जाये और यज्ञदत्त ही केवल जङ्गल में जाये।
सिद्धि-देवदत्त एव ग्रामं गच्छतु, स देवदत्त एवारण्यं गच्छतु । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, 'ग्राम' पद से परवर्ती, 'च' का लोप होने पर प्रथमा 'गच्छतु' तिङन्त विभक्ति को अवधारणार्थक एव' शब्द के प्रयोग में इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। ऐसे ही 'अह' शब्द के लोप में-देवदत्त एव ग्रामं गच्छतु, यज्ञदत्त एवारण्यं गच्छतु । स्वराङ्कन विधि पूर्ववत् है। सर्वानुदात्तविकल्प:
(४६) चादिलोपे विभाषा।६३। प०वि०-च-आदिलोपे ७१ विभाषा ११ ।
स०-च आदिर्येषां ते चादयः, तेषां चादीनां लोप इति चादिलोपः, तस्मिन्-चादिलोपे (बहुव्रीहिगर्भितषष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, प्रथमेति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ पदाच्चादिलोपे प्रथमा तिङ् विभाषा सर्वानुदात्ता न।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमाना पदात् परा चादिलोपे च सति प्रथमा तिङ्विभक्तिर्विकल्पेन सर्वानुदात्ता न भवति ।
उदा०-(चलोप:) शुक्ला व्रीहयो भवन्ति/भवन्ति । श्वेता मा आज्याय दुर्हन्ति/दुहन्ति । (वालोप:) व्रीहिभिर्यजेत/यजेत । यवैर्यजेत/यजेत । एवं शेषेष्वपि यथाप्रयोगदर्शनमुदाहार्यम् ।
___ आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती, (चादिलोपे) च, वा, ह, अह, एव इन शब्दों का लोप होने पर (प्रथमा) प्रथमा (तिङ्) तिङ्-विभक्ति (विभाषा) विकल्प से (सर्वानुदात्ता) सर्वानुदात्त (न) नहीं होती है।
उदा०-(चलोप) शुक्ला व्रीहयो भवन्ति/भवन्ति । और सफेद चावल होते हैं। श्वेता गा आज्याय दुर्हन्ति दुहन्ति । और सफेद गौओं को घी के लिये दुहते हैं।
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