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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं हन्त इत्यनन च युक्त सोपसर्गम् उत्तमपुरुषवर्जितं लोडन्तं तिङन्तं पदं विकल्पेन सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-हन्त प्रविश । हन्त प्रविश । हन्त प्रशाधि । हन्त प्राधि ।
आयभाषा: अर्थ--(अपादादी) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (हन्त) हन्त इस शब्द से (युक्तम्) संयुक्त (च) भी (सोपसर्गम्) उपसर्गसहित (अनुत्तमम्) उत्तमपुरुष से रहित (लोट्) लोट्-प्रत्ययान्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (विभाषितम्) विकल्प से (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है।
उदा०-हन्त प्रावेश । हन्त प्रविश । हर्ष है, प्रवेश कर। हन्त प्रशाधि । हन्त प्रशांधि । हर्ष है, प्रशासन कर।
सिद्धि-हन्त प्रावश । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान, हन्त पद से परवर्ती तथा इससे संयुक्त, प्र-उपर्गसहित और उत्तमपुरुष से राहत लोट्-प्रत्ययान्त तिङन्त प्रावश' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। पश्चात् पूर्वोक्त यथाप्राप्त स्वर होता है। विकल्प-पक्ष में सर्वानुदात्त है-प्रविश । ऐसे ही-हन्त प्रशाधि/ प्रशाधि । सवानुदात्तप्रतिषेधः
(३८) आम एकान्तरमामन्त्रितमनन्तिके।५५।
प०वि०- आम: ५।१ एकान्तरम् १।१ आमन्त्रितम् ११ अनन्तिके ७।१।
स०-एकम् {पदम्) अन्तरं यस्य तत्-एकान्तरम् (बहुव्रीहिः)। न अन्तिकौमति अनन्तिकम्, तस्मिन्-अनन्तिके (नञ्तत्पुरुषः)।
अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, नेति चानुवर्तते ।
अन्वय:-अपादादौ वाऽऽम: पदात् परमेकान्तरमनन्तिके आमन्त्रितं पदं सवमनुदातं न।
__ अर्थ:-अपादादौ वर्तमानम् आमः पदात् परमेकपदान्तरमनन्तिके विद्यमानमाऽऽमन्त्रितान्तं पदं सर्वमनुदात्तं न भवति।
उदा०-आम् पचसि देवदत्त ! आम् भो देवदत्त !
आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (आम:) आम् इस (पदात्) पद से परवर्ती (एकान्तरम्) एक पद के अन्तर-व्यवधानवाला
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