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________________ ४६३ अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (पदात्) पद से परवर्ती (गत्यर्थलोटा) गत्यर्थक धातुओं के लोट् प्रत्यय से (युक्तम्) संयुक्त (लुट्) लुट्-प्रत्ययान्त (तिङ्) तिङन्त (पदम्) पद (सर्वमनुदात्तम्) सर्वानुदात्त (न) नहीं होता है, (चेत्) यदि (कारकम्) कर्ता और कर्म कारक (सर्वान्यत्) सारा अन्य (न) न हो। उदा०-(कर्ता) आगच्छ देवदत्त ! ग्रामं द्रक्ष्यसि एनम् । हे देवदत्त ! तू गांव आ, तू इसे देखेगा। आगच्छ देवदत्त ! ग्राममोदनं भोक्ष्यसे । हे देवदत्त ! तू गांव आ, तू भात खायेगा। (कर्म) उह्यन्तां देवदत्तेन शालयः, तेनैव भोक्ष्यन्ते। देवदत्त के द्वारा शालि (चावल) ढोये जायें, वे उसके द्वारा ही खाये जायेंगे। उह्यन्तां देवदत्तेन शालयः, यज्ञदत्तेन भोक्ष्यन्ते। देवदत्त के द्वारा शालि ढोये जायें, वे यज्ञदत्त के द्वारा खाये जायेंगे। सिद्धि-आगच्छ देवदत्त ! ग्रामं द्रक्ष्यसि एनम् । यहां ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान,ग्रामम् पद से परवर्ती, गत्यर्थक 'गम्' धातु के लोट् लकार 'आगच्छ' से संयुक्त, लट्-प्रत्ययान्त तिङन्त 'द्रक्ष्यसि' पद को इस सूत्र से सर्वानुदात्त का प्रतिषेध होता है। यहां आगच्छ पद कर्ता कारक में है और द्रक्ष्यसि पद भी कर्ता कारक में है अत: कारक सर्व-अन्य (न) नहीं है। ऐसे ही-आगच्छ देवदत्त ! ग्राममोदनं भोक्ष्यसे। उह्यन्तां देवदत्तेन शालयस्तेनैव भोक्ष्यन्ते आदि प्रयोग कर्मकारक के हैं। शेष कार्य पूर्ववत् है। सर्वानुदात्तप्रतिषेधः (३५) लोट् च।५२। प०वि०-लोट् १।१ च अव्ययपदम् । अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादौ, तिङ्, न, युक्तम्, गत्यर्थलोटा, न चेत्, कारकम्, सर्वान्यदिति चानुवर्तते। अन्वय:-अपादादौ पदात् गत्यर्थलोटा युक्तं लोट् तिङ् पदं च सर्वमनुदात्तं न, न चेत् कारकं सर्वान्यत् ।। अर्थ:-अपादादौ वर्तमानं पदात् परं गत्यर्थलोटा युक्तं लोडन्तं तिङन्तं पदं सर्वमनुदात्तं न भवति, न चेत् कारकं सर्वान्यद् भवति, यस्मिन् कतरि कर्मणि वा कारके लोट् तस्मिन्नेव कारके यदि लोडपि भवति। उदा०-(कर्ता) आगच्छ देवदत्त ! ग्रामं पश्य । आगच्छ विष्णुमित्र ! ग्रामं शाधि। (कर्म) आगम्यतां देवदत्तेन, ग्रामो दृश्यतां यज्ञदत्तेन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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