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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादाविति चानुवर्तते।
अन्वय:-अपादादौ कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोस्तिङ: पदात् गोत्रादीनि पदानि सर्वाण्यानुदात्तानि।
अर्थ:-अपादादौ वर्तमानानि कुत्सने आभीक्ष्ण्ये चार्थे तिङन्तात् पदात् पराणि गोत्रादीनि पदानि सर्वानुदात्तानि भवन्ति ।
उदा०- (कुत्सनम्) पचति गोत्रम् । जल्पति गोत्रम् । पचति ब्रुवम् । जल्पति ब्रुवम् । (आभीक्ष्ण्यम्) पचति पचति गोत्रम् । जल्पति जल्पति गोत्रम्, इत्यादिकम्।
गोत्र। ब्रुव! प्रवचन । प्रहसन। प्रकथन । प्रत्ययन। प्रचक्षण । प्राय। विचक्षण। अवचक्षण। स्वाध्याय। भूयिष्ठ। वा नाम । इति गोत्रादीनि ।। (नाम इत्येतद् वा निहन्यते)।
आर्यभाषा: अर्थ- (अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि में अविद्यमान (कुत्सनाभीक्ष्ण्ययोः) कुत्सन=निन्दा और आभीक्ष्णये=पुन: पुनर्भाव अर्थ में विद्यमान (तिङ:) तिङन्त (पदात्) पद से परे (गोत्रादीनि) गोत्र आदि (पदानि) पद (सर्वाण्यनुदात्तानि) सर्वानुदात्त=निघात होते हैं।
उदा०-(कुत्सन) पचति गोत्रम् । जल्पति गोत्रम्। पचति ब्रवम् । जल्पति ब्रुवम् । जो पुरुषार्थ को छोड़कर अपने गोत्र की उच्चता आदि बतलाकर जीवन-यापन करता है वह-पचति गोत्रम्, जल्पति गोत्रम् कहा जाता है। यहां पच्' धातु व्यक्तीकरण (प्रसिद्धि) अर्थ में है, पकाने अर्थ में नहीं। पचति ब्रुवम् । वह निन्दित पकाता है। जल्पति ब्रुवम् । वह निन्दित तर्क करता है। (आभीक्ष्ण्य) पचति पचति गोत्रम् । वह अपने गोत्र को पुन: पुन: प्रकट करता है। जल्पति जल्पति गोत्रम् । अर्थ पूर्ववत् है।
सिद्धि-पचति गोत्रम् । यहां पचति' इस तिङन्त पद से परे कुत्सन (निन्दा) अर्थ में 'गोत्रम्' पद इस सूत्र से सर्वानुदात्त निघात होता है। ऐसे ही-जल्पति गोत्रम् । आभीक्ष्ण्य अर्थ में-पचति पचति गोत्रम् । जल्पति जल्पति गोत्रम् । ___अपना गोत्र बतलाकर जीविका करना धर्मशास्त्र के अनुसार निन्दित है। मनुस्मृति में लिखा है
न भोजनार्थं स्वे विप्र: कुलगोत्रे निवेदयेत् । भोजनार्थं हि ते शंसन् वान्ताशीत्युच्यते बुधैः ।। (मनु० ३ १७१)
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