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द्वितीया ,
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् स्थानी योग: उदाहरणम् भाषार्थ: (३) षष्ठी | ह | ग्रामो मम ह स्वम् ग्राम मेरी निश्चित सम्पत्ति है।
| ग्राम आवयोर्ह स्वम् ग्राम हम दोनों की निश्चित सम्पत्ति है।
ग्रामोऽस्माकं ह स्वम् ग्राम हम सब की निश्चित सम्पत्ति है। चतुर्थी | , ग्रामो मह्यं ह दीयते ग्राम मुझे निश्चित दिया जाता है।
ग्राम आवाभ्यां ह दीयते ग्राम हम दोनों को निश्चित दिया जाता है। ग्रामोऽस्मभ्यं ह दीयते | ग्राम हम सब को निश्चित दिया जाता है। ग्रामो मां ह पश्यति ग्राम मुझे निश्चित देखता है। ग्राम आवां ह पश्यति | ग्राम हम दोनों को निश्चित देखता है।
ग्रामोऽस्मान् ह पश्यति | ग्राम हम सब को निश्चित देखता है। (४) षष्ठी | अह | ग्रामो ममाह स्वम् आश्चर्य है ग्राम मेरी सम्पत्ति है।
ग्राम आवयोरह स्वम् | आश्चर्य है ग्राम हम दोनों की सम्पत्ति है।
ग्रामोऽस्माकमह स्वम् आश्चर्य है ग्राम हम सब की सम्पत्ति है। चतुर्थी | ,, ग्रामो मह्यमह दीयते । आश्चर्य है ग्राम मुझे दिया जाता है।
ग्राम आवाभ्यामह दीयते । आश्चर्य है ग्राम हम दोनों को दिया जाता है।
ग्रामोऽस्मभ्यमह दीयते । आश्चर्य है ग्राम हम सब को दिया जाता है। द्वितीया ,, ग्रामो मामह पश्यति । आश्चर्य है ग्राम मुझे देखता है।
ग्राम आवामह पश्यति । आश्चर्य है ग्राम हम दोनों को देखता है।
ग्रामोऽस्मानह पश्यति | आश्चर्य है ग्राम हम सब को देखता है। (५) षष्ठी । एव | ग्रामो ममैव स्वम् ग्राम तेरी ही सम्पत्ति है।
ग्राम आवयोरेव स्वम् | ग्राम तुम दोनों की सम्पत्ति है।
ग्रामोऽस्माकमेव स्वयम् | ग्राभ तुम सब की सम्पत्ति है। चतुर्थी | ,, | ग्रामो मह्यमेव दीयते | ग्राम मुझे ही दिया जाता है।
ग्राम आवाभ्यामेव दीयते | ग्राम हम दोनों को ही दिया जाता है। ग्रामोऽस्मभ्यमेव दीयते | ग्राम हम सब को ही दिया जाता है। | ग्रामो मामेव पश्यति । ग्राम मुझे ही देखता है।
ग्राम आवामेव पश्यति । ग्राम हम दोनों को ही देखता है। | ग्रामोऽस्मानेव पश्यति । ग्राम हम सब को ही देखता है।
द्वितीया ..
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