________________
स्थानी योग:
चतुर्थी
द्वितीया
(अस्मद् ) (१) षष्ठी
चतुर्थी
द्वितीया
चतुर्थी
द्वितीया
उदाहरणम्
एव ग्रामो युष्माकमेव स्वम् ग्रामस्तुभ्यमेव दीयते
11
च
11
37
27
अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
भाषार्थ:
| ग्राम तुम सब की सम्पत्ति है ।
ग्राम तुझे ही दिया जाता है। ग्राम तुम दोनों को ही दिया जाता है। ग्राम तुम सब को ही दिया जाता है । ग्राम तुझे ही देखता है ।
ग्राम तुम दोनों को ही देखता है। ग्राम तुम सब को ही देखता है।
17
(२) षष्ठी वा ग्रामो मम वा स्वम्
ग्राम आवयोर्वा स्वम्
Jain Education International
ग्रामो युवाभ्यामेव दीयते
ग्रामो युष्मभ्यमेव दीयते
ग्रामो त्वामेव च पश्यति
| ग्रामो युवामेव पश्यति ग्रामो युष्मानेव पश्यति
ग्रामो मम च स्वम् ग्राम आदयोश्च स्वम्
| ग्रामोऽस्माकं च स्वम्
ग्रामो मह्यं च दीयते
ग्राम आवाभ्यां च दीयते
ग्रामोsस्मभ्यं च दीयते ग्रामो मां च पश्यति
ग्राम आवां च पश्यति ग्रामोऽस्माँश्च पश्यति
ग्रामोऽस्माकं वा स्वम्
ग्रामो मह्यं वा दीयते
ग्राम आवाभ्यां वा दीयते
ग्रामोsस्मभ्यं वा दीयते
ग्रामो मां वा पश्यति
ग्राम आवां वा पश्यति ग्रामोऽस्मान् वा पश्यति
४३५
ग्राम तेरी भी सम्पत्ति है । ग्राम हम दोनों की भी सम्पत्ति है । ग्राम हम सब की भी सम्पत्ति है । ग्राम मुझे भी दिया जाता है ।
ग्राम हम दोनों को भी दिया जाता है । ग्राम हम सब को भी दिया जाता है । ग्राम मुझे भी देखता है
1
ग्राम हम दोनों को भी देखता है । ग्राम हम सब को भी देखता है। ग्राम मेरी सम्पत्ति के समान है। ग्राम हम दोनों की सम्पत्ति के समान है । ग्राम हम सब की सम्पत्ति के समान है । ग्राम मुझे दानसा किया जाता है।
ग्राम हम दोनों को दानसा किया जाता है। ग्राम हम सब को दानसा किया जाता है। ग्राम मुझे देखता सा है। ग्राम हम दोनों को देखता - सा है । ग्राम हम सब को देखता - सा है
1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org