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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी प्रवचनम् अर्थः-पदाद् उत्तरस्याऽपादादौ वर्तमानस्य पदस्य सर्वमनुदात्तं भवतीत्यधिकारोऽयम्, 'तिङि चोदात्तवति' (८।१।७१) इति यावत् । यथा वक्ष्यति-‘आमन्त्रितस्य च ( ८ । १ । १९) इति । ४२८ | उदा०-पचसि देवदत्त: । पादशब्देनात्र ऋक्पाद: श्लोकपादश्च गृह्यते । आर्यभाषा: अर्थ- (पदात्) पद से परे (अपादादौ) पाद के आदि में अविद्यमान ( पदस्य) पद को (सर्वमनुदात्तम् ) सर्व अनुदात्त स्वर होता है, यह तिङि चोदात्तवति' ( ८1१1७१) तक अधिकार सूत्र है । जैसे कि पाणिनि मुनि कहेंगे- 'आमन्त्रितस्य च (८1१1१९) अर्थात् पद से परे पाद के अविद्यमान आमन्त्रित पद को सर्व- अनुदात्त स्वर होता है । उदा० - पचसि देवदत्त ! हे देवदत्त तू पकाता है। सिद्धि - पचसि देवदत्त ! यहां 'पचति' इस शब्द से परे पाद के आदि में अविद्यमान आमन्त्रित देवदत्त' पद को 'आमन्त्रितस्य च' ( ८1१1१९) से सर्व अनुदात्त स्वर होता है। सर्वमनुदात्तम् (२) आमन्त्रितस्य च । १६ । प०वि० - आमन्त्रितस्य ६ । १ च अव्ययपदम् । अनु०-पदस्य, पदात्, अनुदात्तम्, सर्वम्, अपादादिविति चानुवर्तते । अन्वयः-अपादादौ पदादाऽऽमन्त्रितस्य पदस्य च सर्वमनुदात्तम् । अर्थ:- अपादादौ वर्तमानस्य पदाद् उत्तरस्याऽऽमन्त्रितस्य पदस्य च सर्वमनुदात्तं भवति । उदा० - पचसि देवदत्त ! यजसि यज्ञदत्त ! अपादादाविति किम् ? यत्ते नियानं रजसं मृत्योऽनवधर्म्यम् (शौ०सं० ८ : २ । १० ) । आर्यभाषाः अर्थ - ( अपादादौ) ऋचा आदि के पाद के आदि अविद्यमान (पदात्) पद से परे (आमन्त्रितस्य) आमन्त्रित - संज्ञक (पदस्य) पद को (च) भी (सर्वम् अनुदात्तम्) सर्व-अनुदात्त स्वर होता है । उदा० - पचसि देवदत्त ! हे देवदत्त ! तू पकाता है। यजसि यज्ञदत्त ! हे यज्ञदत्त । तू यज्ञ करता है। सिद्धि- पचसि देवदत्त ! यहां पाद के आदि में अविद्यमान 'पचसि' इस पद से परे आमन्त्रित- संज्ञक देवदत्त' पद को इस सूत्र से सर्व - अनुदात्त स्वर होता है। ऐसे हीयजसि यज्ञदत्त ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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