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________________ ४२० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् द्विर्वचनं बहुव्रीहिवद्भावश्च (6) एकं बहुव्रीहिवत्।। प०वि०-एकम् १।१ बहुव्रीहिवत् अव्ययपदम् । तद्धितवृत्ति:-बहुव्रीहेरिवेति बहुव्रीहिवत् 'तत्र तस्येव' (५ ११ ।११६) इति षष्ठ्य र्थे तति: प्रत्यय:। अनु०-द्वे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-एकं द्वे बहुव्रीहिवच्च। अर्थ:-एकमित्येत्येतस्य शब्दस्य द्वे भवतः, बहुव्रीहिवच्च कार्य भवति। उदा०-एकैकमक्षरं पठति। एकैकयाऽऽहुत्या जुहोति । आर्यभाषा: अर्थ-(एकम्) एक इस शब्द को (द्व) द्विवचन होता है और (बहुव्रीहिवत्) बहुव्रीहि समास के समान कार्य होता है। उदा०-एकैकमक्षरं पठति । वह एक-एक अक्षर पढ़ता है। एकैकयाहुत्या जुहोति । वह एक-एक आहुति से यज्ञ करता है। सुप् प्रत्यय का लोप और पुंवद्भाव ये बहुव्रीहिवद्भाव के प्रयोजन हैं। सिद्धि-(१) एकैकम् । एकम् एकम् । एक-एक । एकैक+सु। एकैक अम्। एकैकम्। यहां 'एक' शब्द को नित्यवीप्सयो:' (८1१।४) से वीप्सा अर्थ में द्विवचन है। इस सूत्र से बहुव्रीहिवद्भाव होने से सुपो धातुप्रातिपदिकयोः' (२।४७१) से सुप्' प्रत्यय का लुक् होता है। पश्चात् कृत्तद्धितसमासाश्च' (१।४।४६) से प्रातिपदिक संज्ञा होकर 'स्वौजस०' (१।४।२) से 'सु' उत्पत्ति और 'अतोऽम्' (७।१।२४) से 'सु' को 'अम्' आदेश होता है। वृद्धिरेचिं' (६।१।८५) से वृद्धिरूप एकादेश और 'अमि पूर्वः' ६।१।१०७) से पूर्वरूप एकादेश होता है। (२) एकैकया। एका+एका । एक+एक । एकैक+टाप् । एकैके+आ। एकैक् अय्+आ। एकैकया। यहां एका शब्द का पूर्ववत् वीप्सा अर्थ में द्विवचन होता है। बहुव्रीहिवद्भाव से स्त्रिया: पुंववत्०' (६।३।३३) से पुंवद्भाव होता है। पश्चात् स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्' और तृतीया-एकवचन की विवक्षा में 'टा' प्रत्यय, 'आङि चाप:' (७।३।१०५) से एकारादेश और 'एचोऽयवायावः' (६।११७८) से अय्-आदेश है। शेष कार्य पूर्ववत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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