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रामन्त्रित असूयासमाध्यायस्य ।
अष्टमाध्यायस्य प्रथमः पादः
४१६ अर्थ:-असूयासम्मतिकोपकुत्सनभर्सनेष्वर्थेषु वर्तमानस्य वाक्यादेरामन्त्रितस्य द्वे भवत: । उदाहरणम्
(१) असूया (परगुणानामसहनम्) माणवक३ माणवक, अभिरूपक३ अभिरूपक रिक्तं ते आभिरूप्यम्।
(२) सम्मति: (पूजा) माणवक३ माणवक, अभिरूपक३ अभिरूपक शोभन: खल्वसि।
(३) कोप: (क्रोध:) माणवक३ माणवक, अविनीतक३ अविनीतक इदानीं ज्ञास्यसि जाल्म।
(४) कुत्सनम् (निन्दनम्) शक्तिके३ शक्तिके, यष्टिके३ यष्टिके रिक्ता ते शक्तिः।
(५) भर्त्सनम् (अपकारशब्दैर्भयोत्पादनम्) चौर चौर३ वृषल वृषल३ धातयिष्यामि त्वा, बन्धयिष्यामि त्वा ।
आर्यभाषा: अर्थ-(असूया०) असूया, सम्मति, कोप, कुत्सन और भर्त्सन अर्थ में विद्यमान (वाक्यादे:) वाक्य के प्रारम्भ में (आमन्त्रितस्य) आमन्त्रित सम्बोधनवाची शब्द को (द) द्विवचन होता है। उदाहरण
(१) असूया (दूसरे के गुणों को सहन न करना) माणवक३ माणवक, अभिरूपक३ अभिरूपक तेरा सौन्दर्य खाली है, अपूर्ण है।
(२) सम्मति (पूजा) माणवक३ माणवक, अभिरूपक३ अभिरूपक तू निश्चय से सोहणा है।
(३) कोप (क्रोध) माणवक३ माणवक, अविनीतक३ अविनीतक तुझे अब पता चलेगा।
(४) कुत्सन (निन्दा) शक्तिके३ शक्तिके, यष्टिके३ यष्टिके तेरी शक्ति खाली है, अपूर्ण है।
(५) भर्त्सन (अपकारवाची शब्दों से भय उत्पन्न करना) चौर चौर३ वृषल वृषल३ मैं तुझे मरवाऊंगा, मैं तुझे बंधवाऊंगा।
सिद्धि-माणवक३ माणवक । यहां असूया शब्द में विद्यमान तथा वाक्य के पारम्भ में आमन्त्रितवाची माणवक' शब्द को इस सूत्र से द्विवचन होता है। असूया, सम्मति, कोप, कुत्सन और भर्त्सन अर्थ में 'स्वरितमामेडितेऽसूयासम्मतिकोपकुत्सनेषु' (८।२।९०३) से पूर्वपद को प्लुत होता है और भर्त्सन अर्थ में 'आमेडितं भर्त्सन' (८।२।७५) से आमेडित पद को प्लुत होता है, जैसा कि ऊपर उदाहरणों में दिखाया गया है।
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