________________
४०२
-
(३) दह
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-अङ्गस्य, अभ्यासस्य, यङ्लुको: अत:, नुगिति चानुवर्तते।
अन्वय:-जपजभदहदशभञ्जपशामऽङ्गानां चाभ्यासस्यानो यङ्लुकोर्नु ।
अर्थ:-जपजभदहदशभञ्जपशामऽङ्गानां चाऽभ्यासस्याऽकारस्य यङि यङ्लुकि च परतो नुगागमो भवति । उदाहरणम्
धातुः । उदाहरणम् | भाषार्थः (१) जप स जञ्जप्यते वह निन्दित विधि से जप करता है। स जञ्जपीति
-समस जञ्जभ्यते | वह निन्दित विधि से जंभाई लेता है। स जञ्जमीति
-समस दन्दह्यते । वह निन्दित विधि से भस्म करता है।
स दन्दहीति . -सम(४) दश स दन्दश्यले । वह निन्दित विधि से डसता करता है।
स दन्दशीति (५) भञ्ज स बम्भज्यते | वह पुन:-पुन: तोड़ता है। स बम्भजीति
-सम(६) पश । स पम्पश्यते । वह पुन:-पुन: बांधता है। स पम्पशीति
-समआर्यभाषा: अर्थ-(जप०) जप, जभ, दी, दश, भज, पश इन (अङ्गानाम्) अगों के (च) भी (अभ्यासस्य) अभ्यास के (अत:) अकार को (यङ्लुको:) यङ् प्रत्यय और यङ्लुक् परे होने पर (नुक्) नुक् आगम होता है।
उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है।
सिद्धि-(१) जञ्जप्यते । यहां जप व्यक्तायां वाचि मानसे च' (भ्वा०प०) धातु से लुपसदचरजपजभदहदशगृभ्यो भावगर्हायाम्' (३।१।२४) से भाव-गर्दा अर्थ में यङ्' प्रत्यय है, क्रियासमभिहार में नहीं। सन्यङो:' (६।१।९) से धातु को द्वित्व होता है-ज-जप्य । इस स्थिति में अभ्यास-अकार को नुक् आगम होता है। 'नश्चापदान्तस्य झलि (८।३।२४) से नकार को अनुस्वार और अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:' (८।४/५७) से परसवर्ण अकार होता है। यङ्लुक में-जञ्जपीति। ऐसे ही जभी गात्रविनामें
__ -सम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org