SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः ૩૬ अन्वय:-निगमे ससूवेति निपातनम् (अङ्गस्याऽभ्यासस्य लिटि अ:}। अर्थ:-निगमे वेदविषये ससूवेति पदं निपात्यते, अर्थात्-ससूव इत्यत्राऽङ्गस्याऽभ्यासस्य लिटि प्रत्यये परतोऽकारादेशो भवति, धातो: परस्मैपदं वुगागमश्च निपात्यते। उदा०-गृष्टि: ससूव स्थविरम् (ऋ० ४।१८।१०)। आर्यभाषा: अर्थ-(निगमे) वेदविषय में (ससूव) ससूव (इति) यह पद निपातित है, अर्थात्-इस (अङ्गस्य) अङ्ग के (अभ्यासस्य) अभ्यास को (लिटि) लिट् प्रत्यय परे होने पर (अः) अकारादेश होता है। 'षूङ्' धातु से परस्मैपद और उसे वुक् आगम निपातन से होता है। उदा०-गृष्टि: ससूव स्थविरम् (ऋ० ४।१८।१०)। ससूव उत्पन्न किया। सिद्धि-ससूव । यहां पूङ् प्राणिगर्भविमोचने (अदा०आ०) धातु से लिट्' प्रत्यय, लकार के स्थान में निपातन से तिप्' आदेश और तिप्' के स्थान में ‘णल्' आदेश है। सू' धातु को निपातन से 'वुक्’ आगम और इसके अभ्यास-उकार को अकारादेश होता है। गुणादेशः (१८) निजां त्रयाणां गुणः श्लौ।७५। प०वि०-निजाम् ६।३ त्रयाणाम् ६।३ गुण: ११ श्लौ ७।१। अनु०-अङ्गस्य, अभ्यासस्येति चानुवर्तते। अन्वय:-निजां त्रयाणामऽङ्गानामऽभ्यासस्य श्लौ गुणः । अर्थ:-निजादीनां त्रयाणामऽङ्गानामऽभ्यासस्य श्लौ सति गुणो भवति। उदा०-(निज्) स नेनेक्ति। (विज्) स वेवेक्ति। (विष्) स वेवेष्टि। णिजिर् शौचपोषणयोः। विजिर् पृथग्भावे। विष्ल व्याप्तौ इति त्रयो निजादय: पाणिनीयधातुपाठस्य जुहोत्यादिगणे पठ्यन्ते । आर्यभाषा: अर्थ-(निजाम्) निज् आदि (त्रयाणाम्) तीन (अङ्गानाम्) अगों . के (अभ्यासस्य) अभ्यास को (श्लौ) शप् को श्लु आदेश होने पर (गुण:) गुण होता है। 'उदा०-(निज्) स नेनेक्ति। वह शोधन/पोषण करता है। (विज्) स वेवेक्ति। वह पृथक् होता है। (विष्) स वेवेष्टि। वह व्यापक होता है। णिजिर् शौचपोषणयोः' (जु०प०) इत्यादि तीन धातु पाणिनीय धातुपाठ के जुहोत्यादि गण में पठित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy