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सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः आर्यभाषा: अर्थ-(तस्मात्) उस दीर्घाभूत (अत:) अकार (अभ्यासात्) अभ्यास से परे (द्विहल:) दो हलोंवाले (अङ्गस्य) अङ्ग को (लिटि) लिट्-प्रत्यय परे होने पर (नुट्) नुट् आगम होता है।
उदा०-स आनङ्ग। वह गया। तौ आनङ्गतः। वे दोनों गये। ते आनङ्गः। वे सब गये। स आनञ्ज। वह प्रकट हुआ। तौ आनञ्जतुः । वे दोनों प्रकट हुये। ते आनः । वे सब प्रकट हुये।
सिद्धि-आनङ्ग। यहां प्रथम 'अगि गतौ' (भ्वा०प०) धातु को 'इदितो नुम् धातो:' (७/११५८) से नुम्' आगम होता है। पश्चात् 'अग्' धातु से लिट्' प्रत्यय, लकार के स्थान में तिप्' आदेश और तिप्' के स्थान में 'णल्' आदेश है। लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१८) से धातु को द्वित्व होता है-अङ्ग्-अङ्ग+अ । अ-अङ्ग+अ। आ-अङ्ग+अ। इस स्थिति में 'अत आदे: (७।४।७०) से दीर्धीभूत आकार-अभ्यास से परे दो हल्वाले 'अङ्ग्’ को नुट्' आगम होता है। तस् (अतुस्) प्रत्यय में-आनङ्गतुः । झि (उस्) प्रत्यय में-आनगुः । 'अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु' (रुधा०प०) धातु से-आनञ्ज, आनञ्जतुः, आनः । नुट्-आगमः
(१५) अश्नोतेश्च १७२। प०वि०-अश्नोते: ६१ च अव्ययपदम् । अनु०-अङ्गस्य, अभ्यासस्य, लिटि, अत:, तस्मात्, नुडिति चानुवर्तते। अन्वय:-तस्माद् अतोऽभ्यासाद् अश्नोतेरङ्गस्य च लिटि नुट् ।
अर्थ:-तस्माद् दीर्घाभूताद् आकाराद् अभ्यासाद् उत्तरस्याऽश्नोतेरङ्गस्य लिटि प्रत्यये परतो नुडागमो भवति।
उदा०-स व्यानशे । तौ व्यनशाते। ते व्यानशिरे। अद्विहलार्थोऽयमारम्भः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(तस्मात्) उस दीर्घाभूत (अत:) आकार (अभ्यासात्) अभ्यास से परे (अश्नोते:) अश्नोति-अश् इस (अङ्गस्य) अग को (च) भी (नुट्) नुडागम होता है।
उदा०-स व्यानशे। उसने व्याप्त किया। तौ व्यनशाते। उन दोनों ने व्याप्त किया। ते व्यानशिरे। उन सब ने व्याप्त किया।
सिद्धि-व्यानशे। यहां वि-उपसर्गपूर्वक 'अश्ङ् व्याप्तौ' (स्वा०आ०) धातु से लिट' प्रत्यय, लकार के स्थान में त' आदेश और लिटस्तझयोरेशिरेच (३।४।८१) से त' के स्थान में 'एश्' आदेश है। लिटि धातोरनभ्यासस्य' (६।१।८) से धातु को द्वित्व
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