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सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः
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सिद्धि - (१) सुधितम् । यहां सु-उपसर्गपूर्वक 'डुधाञ् धारणपोषणयो:' (जु०उ० ) धातु से 'निष्ठा' (३1२1१०२ ) से भूतकाल में 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'धा' धातु को 'क्त' प्रत्यय परे होने पर इकारादेश अथवा 'क्त' प्रत्यय को इडागम निपातत है। ऐसे ही वसु-उपपद 'धा' धातु से - वसुधितम् । नेम-उपपद 'धा' धातु से नेमधितम् ।
(२) धिष्व । यहां पूर्वोक्त 'धा' धातु से 'लोट् च' (३ । ३ । १६२ ) से 'लोट्' प्रत्यय, लकार के स्थान में 'थास्' आदेश, 'सवाभ्यां वाम' (३ । ४1९१) से एकार को वकारादेश है। इस सूत्र से 'धा' धातु को इकारादेश अथवा थास् (से) प्रत्यय को इडागम और 'फूल' (६ 18190) से प्राप्त द्विर्वचन का अभाव निपातित है।
(३) धिषीय । यहां पूर्वोक्त 'धा' धातु से 'आशिषि लिङ्लोट (३ | ३ |१७३) आशीर्वाद अर्थ में• लिङ्' प्रत्यय, 'लिङः सीयुट्' (३।४ । १०२ ) से 'सीयुट् ' आगम और लकार के स्थान में इट् (उत्तमपुरुष एकवचन ) आदेश है। इस सूत्र से 'धा' को इकारादेश अथवा सीयुट् प्रत्यय को इडागम निपातित है ।
दद्-आदेशः
(२६) दो दद् घोः । ४६ । प०वि०-द: ६ ।१ दद् १ । १ घो: ६ । १ । अनु०-अङ्गस्य, ति, कितीति चानुवर्तते । अन्वयः - घोर्दोऽङ्गस्य ति किति दद् ।
अर्थ:-घु-संज्ञकस्य दा- अङ्गस्य तकारादौ किति प्रत्यये परतो ददाऽऽदेशो भवति ।
उदा०-दत्त:, दत्तवान्। दत्तिः ।
आर्यभाषाः अर्थ- (घोः) घु-संज्ञक (दः) दा इस (अङ्गस्य ) अङ्ग को (ति) तकारादि (किति) कित् प्रत्यय परे होने पर (दद्) दद् आदेश होता है।
उदा० - दत्तः, दत्तवान् । उसने दिया । दत्तिः । दान करना ।
सिद्धि-(१) दत्त:। यहां 'डुदाञ् दानें' (जु०उ० ) धातु से 'निष्ठा' (३/२/१०२ ) से भूतकाल में 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'दा' धातु को तकारादि, कित् 'क्त' प्रत्यय परे होने पर 'दद्' आदेश होता है। 'खरि च' (८/४/५४) से दकार के स्थान में चर् तकारादेश है। क्तवतु प्रत्यय में- दत्तवान् ।
(२) दत्ति: । यहां पूर्वोक्त 'दा' धातु से 'स्त्रियां क्तिन्' (३ । ३ । ९४ ) से 'क्तिन्' प्रत्यय है। सूत्र - कार्य पूर्ववत् है ।
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