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________________ ३४६ सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः उदा०-(ऋ) अरार्यते। संयोगादेर्ऋत:-(स्मृ) सास्मर्यते । (च) दाध्वर्यते। (स्म) सास्मयते।। आर्यभाषा: अर्थ-(अर्तिसंयोगाद्यो:) अर्ति-ऋ और संयोगादि (ऋत:) ऋकारान्त (अङ्गस्य) अङ्ग को (यङि) यङ् प्रत्यय परे होने पर (च) भी (गुण:) गुण होता है। उदा०-(ऋ) अरार्यते। वह पुन:-पुनः/अधिक प्राप्त करता है। संयोगादि ऋकारान्त-(स्म) सास्मर्यते । वह पुन:-पुन:/अधिक शब्द करता है। (ध्व) दाध्वर्यते। वह पुन:-पुन:/अधिक कुटिलता करता है। (स्मृ) सास्मयते। वह पुन:-पुनः/अधिक स्मरण करता है। सिद्धि-अरार्यते। ऋ+यङ्। ऋ+य। अर्+य। अ+र्य-र्य। अ+र-अ-र्य। अ+र आ-र् य । अरार्य+लट् । अरायते। ___ यहां ऋ गतिप्रापणयो:' (भ्वा०प०) से 'धातोरेकाचो हलादेः क्रियासमभिहारे यङ् (३।१।२२) से 'यड्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'ऋ' धातु को यङ्' प्रत्यय परे होने पर गुण (अर्) होता है। पश्चात् सन्यडो:' (६।१।९) से द्विर्वचन की प्राप्ति में 'अजादेर्द्वितीयस्य (६।१।२) के नियम से द्वितीय एकाच अवयव (र्य) को द्वित्व होता है। हलादि शेषः' (७।४।६०) से अभ्यास का आदि हल् () शेष रहता है। दीर्घोऽकितः' (७।४।८३) से अभ्यास को दीर्घ (रा) होता है। ऐसे ही संयोगादि और ऋकारान्त स्व शब्दोपतापयोः' (भ्वा०प०) धातु से-सास्वर्यते। वहूर्च्छते' (भ्वा०प०) धातु से-दाध्वर्यते। स्मृ चिन्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से-सास्मर्यते। डिति च' (१।१५) से गुणप्रतिषेध प्राप्त था। ई-आदेश: (११) ई घ्राध्मोः ।३१। प०वि०-ई ११ (सु-लुक्) घ्राध्मो: ६।२। स०-घ्राश्च ध्माश्च तौ घ्राध्मौ, तयो:-घ्राध्मो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-अङ्गस्य, यडीति चानुवर्तते। अन्वय:-घ्राध्मोरङ्गयोङि ई:।। अर्थ:-घ्राध्मोरङ्गयोर्यङि प्रत्यये परत ईकारादेशो भवति । उदा०-(घा) जेघ्रीयते। (ध्मा) देध्मीयते। आर्यभाषा: अर्थ-(घ्राध्मो:) घ्रा, ध्मा इन (अङ्गयोः) अगों को (यडि) यङ् प्रत्यय परे होने पर (ई.) ईकार आदेश होता है। उदा०-(घ्रा) जेघ्रीयते। वह पुन:-पुनः/अधिक सूंघता है। (ध्मा) देध्मीयते। वह पुन:-पुन:/अधिक फूंकता है। मुख से वंशी आदि वाद्य बजाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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