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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-अर्तिसंयोगाद्योरङ्गयोर्ऋतो यकि यि असार्वधातुके लिङि च गुणः।
अर्थ:-अर्ते: संयोगादेश्च ऋकारान्तस्याऽङ्गस्य यकि यकारादाव सार्वधातुके लिङि च प्रत्यये परतो गुणो भवति ।
उदा०-(यक्) ऋ-अर्यते। संयोगादि-ऋत:-स्मर्यते। (लिङ्) ऋ-अर्यात्। संयोगादि-ऋत:-स्मर्यात् ।
आर्यभाषा8 अर्थ-(अर्तिसंयोगाद्यो:, ऋत:) ऋ और संयोगादि (अङ्गयो) अगों को (यकि) यक् प्रत्यय और (यि) यकारादि (असार्वधातुके) सार्वधातुक से भिन्न (लिङि) लिङ् प्रत्यय परे होने पर (गुण:) गुण होता है।
उदा०-(यक्) ऋ-अर्यते। उसके द्वारा प्राप्त किया जाता है। संयोगादि-स्मर्यते। उसके द्वारा स्मरण किया जाता है। (लिङ्) ऋ-अर्यात् । वह प्राप्त करे (आशीर्वाद)। संयोगादि ऋकारान्त-स्मर्यात् । वह स्मरण करे (आशीर्वाद)।
सिद्धि-(१) अर्यते। यहां 'ऋ गतिप्रापणयोः' (भ्वा०प) धातु से कर्म-अर्थ में लट्' प्रत्यय है। सार्वधातुके यक्' (३।१।६७) से यक्’ विकरण-प्रत्यय होता है। इस सूत्र से 'ऋ' धातु को यक्' प्रत्यय परे होने पर गुण (अर्) होता है। क्डिति च (१।१५) से गुण-प्रतिषेध प्राप्त था। ऐसे ही स्म चिन्तायाम् (भ्वा०प०) इस संयोगादि धातु से-स्मर्यते।
(२) अर्यात् । यहां पूर्वोक्त 'ऋ' धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौं (३।३।१७३) से आशीर्वाद अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। लिङशिषि' (३।४।११६) से आशीर्लिङ् आर्धधातुक है। इस सूत्र से 'ऋ' धातु को यकारादि, असार्वधातुक लिङ् (यासुट) प्रत्यय परे होने पर गुण होता है। ऐसे ही स्मृ चिन्तायाम् (भ्वा०प०) इस संयोगादि धातु से-स्मर्यात् । गुणादेश:
__(१०) यङि च।३०। प०वि०-यडि ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-अङ्गस्य, ऋतः, गुणः, अतिसंयोगाद्योरिति चानुवर्तते। अन्वय:-अतिसंयोगाद्योति॒तो यङि गुणः ।
अर्थ:-अर्ते: संयोगादेर्ऋकारान्तस्याङ्गस्य च यडि प्रत्यये परतश्च गुणो भवति।
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