SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०० - बहुकुमारीको देश: । बहुत कुमारियोंवाला देश । बहुब्रह्मबन्धूको देश: । बहुत पतित ब्राह्मणियोंवाला देश । बहुलक्ष्मीको राजा। बहुत लक्ष्मीवाला राजा । सिद्धि - बहुकुमारीकः । यहां प्रथम बहु और कुमारी शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे से बहुव्रीहि समास है । तत्पश्चात् 'नघृतश्च' (५/४ । १५३) से समासान्त 'कप्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से अणन्त 'बहुकुमारी' शब्द को 'कप्' प्रत्यय परे होने पर ह्रस्व (इ) नहीं होता है । 'केऽण:' ( ७ / ४ (१३) से ह्रस्वादेश प्राप्त था । ऐसे ही 'ब्रह्मबन्धू' शब्द से- ब्रह्मबन्धूकः । 'बहुलक्ष्मी' शब्द से - बहुलक्ष्मीकः । हस्वादेशविकल्पः ३३६ (१५) आपोऽन्यतरस्याम् । १५ । प०वि०-आप: ६।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-अङ्गस्य, ह्रस्वः, न, कपीति चानुवर्तते । अन्वयः - आपोऽङ्गस्य कपि अन्यतरस्यां ह्रस्वो न । अर्थः-आबन्तस्याऽङ्गस्य कपि प्रत्यये परतो विकल्पेन ह्रस्वो न भवति । उदा०-बहुखट्वाको देश:, बहुखट्वको देश: । बहुमालाको देश:, बहुमालको देश: । आर्यभाषाः अर्थ - ( आप: ) आप् प्रत्यय जिसके अन्त में है उस (अङ्गस्य ) अङ्ग को (कपि) कप् प्रत्यय परे (अन्यतरस्याम्) विकल्प से ( ह्रस्व:) ह्रस्वादेश (न) नहीं होता है । उदा०- - बहुखट्वाको देश:, बहुखट्वको देश: । बहुत खाटोंवाला देश । बहुमालाको देश:, बहुमालको देश: । बहुत मालाओंवाला देश । सिद्धि - बहुखट्वाक: । यहां प्रथम बहु और खट्वा शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' ( २/२/२४) से बहुव्रीहि समास है । तत्पश्चात् 'शेषाद् विभाषा' (५।४1९५४) से समासान्त 'कप्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से आबत 'खट्वा' शब्द को 'कप्' प्रत्यय परे होने पर ह्रस्वादेश नहीं होता है। विकल्प-पक्ष में ह्रस्वादेश है - बहुखट्वक: । ऐसे ही 'बहुमाला' शब्द से - बहुमालाकः, बहुमालकः । गुणादेशः (१६) ऋदृशोऽङि गुणः | १६ | प०वि०-ऋ-दृश: ६ । १ अङ ७ । १ गुण: १ । १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy