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________________ ३३४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् को द्वित्व, हलादिः शेष:' (७।४।६०) से अभ्यास का अकार शेष, इसे 'अत आदेः' (७।४।७०) से दीर्घ और इसे तस्मान्नुड् द्विहलः' (७/४/७१) से नुट्-आगम होता है। ऐसे ही तस् (अतुस्) प्रत्यय में-आनछेतुः । झि (उस्) प्रत्यय में-आनच्र्छः । ऋ गतौ' (जु०प०) धातु से-आरतु, आरुः । नि-उपसर्गपूर्वक ऋकारान्त कृ विक्षेपे (तु०प०) धातु से-निचकरतुः, निचकरुः। हस्वादेशविकल्पः (१२) शृदृप्रां ह्रस्वो वा।१२। प०वि०-शृ-दृ-प्राम् ६।३ ह्रस्व: ११ वा अव्ययपदम्। स०-शृश्च दृश्च पृश्च ते शृदृप्रः, तेषाम्-शृदृप्राम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-अङ्गस्य, लिटीति चानुवर्तते। अन्वय:-शृदृप्रामऽङ्गानां लिटि वा ह्रस्वः । अर्थ:-शृदृप्रामऽङ्गानां लिटि प्रत्यये परतो विकल्पेन ह्रस्वो भवति । उदा०-(शृ) विशश्रतुः, विशश्रुः । विशशरतुः, विशशरु:। () विदद्रतुः, विदद्रुः । विददरतु:, विददरु: । (पृ) निपप्रतुः, निपग्रुः । निपपरतुः, निपपरुः। आर्यभाषा: अर्थ-(शृदृप्राम्) शू, दृ, पृ इन (अङ्गानाम्) अगों को (लिटि) लिट्-प्रत्यय परे होने पर (वा) विकल्प से (हस्व:) ह्रस्व होता है। उदा०-(श) विशश्रतः, विशश्वः । उन दोनों ने हिंसा की, मार डाला। विशशरतुः, विशशरुः । उन सब ने हिंसा की। (इ) विदद्वतुः, विदुः । उन दोनों ने विदारण किया, फाड़ा। विददरतुः, विददरुः । उन सब ने विदारण किया। (ए) निपप्रतुः, निपतः । उन दोनों ने पालन-पूरण किया। निपपरतुः, निपपरुः । उन सब ने पालन-पूरण किया। सिद्धि-(१) विशश्रतुः। वि++लिट्। वि++ल। वि+श+अतुस् । वि+शशृ+अतुस् । वि+श् अर्++अतुस् । वि+श-श्र+अतुस् । विशश्रतुः । यहां वि-उपसर्गपूर्वक शृ हिंसायाम्' (क्रया०प०) धातु से लिट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से लिट् (अतुस्) प्रत्यय परे होने पर शृ' को ह्रस्व (शृ) होता है। इको यणचि (६।१७७) से ऋकार को यणादेश (र) है। उरत्' (७।४।६६) से अभ्यास-ऋकार को अकारादेश, उरण रपरः' (१।१।५१) से इसे रपरत्व और हलादि: शेष:' (७।४।६०) से शकार शेष रहता है। विकल्प-पक्ष में 'शू' को ह्रस्व नहीं होता है अत: ऋच्छत्युताम् (७।४।११) से 'श' को गुण होता है-विशशरतुः। ऐसे ही झि' (उस्) प्रत्यय में-विशश्रुः, विशशरु: । ऐसे ही टू विदारणे (क्रया०प०) धातु से-विदद्रतुः, विददरतुः । विदद्रुतः, विदुगुः । पृ पालनपूरणयोः' (क्रया०प०) धातु से-निपप्रतुः, निपपरतुः । निपघ:, निपपरुः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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