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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ३२६ टि-भाग का लोप होता है । अत: 'मालि' यह 'अग्लोपी' धातु है । इससे पूर्ववत् 'लुङ् ' प्रत्यय और 'च्लि' के स्थान में चङ् आदेश करने पर इस सूत्र से उपधा-आकार को ह्रस्वादेश (अ) नहीं होता है । (२) अममालत् । यहां 'मातृ' शब्द से 'तत्करोति तदाचष्टे (चुरादि० गणसूत्र ) से आचष्टे अर्थ में 'णिच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (३) अत्यरराजत् । यहां अति-पूर्वक 'राजन्' शब्द से 'प्रातिपदिकाद् धात्वर्थे बहुलमिष्ठवच्च' (चुरादि० गणसूत्र ) से णिच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (४) अन्वलुलोमत् । यहां अनु-पूर्वक 'लोमन्' शब्द से 'सत्यापपाशरूप०' (३ 1१1२५ ) से अनुमार्जन अर्थ में 'णिच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (५) अबबाधत । यहां 'बाघृ विलोडने' (भ्वा०आ०) इस ऋदित् धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'याच याच्ञायाम् (भ्वा०आ०) धातु से - अययाचत् । ' 'ढौकृ गतौँ' (भ्वा०आ०) धातु से - अडुढौकत् । हस्वादेशविकल्पः (३) भ्राजभासभाषदीपजीवमीलपीडामन्यतरस्याम् । ३ । प०वि०- भ्राज-भास - भाष-दीप- जीव-मील- पीडाम् ६।३ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । स०-भ्राजश्च भासश्च भाषश्च दीपश्च जीवश्च मीलश्च पीड् च ते-भ्राज०पीड:, तेषाम्-भ्राज० पीडाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्वः ) । अनु०-अङ्गस्य, णौ, चङि, उपधायाः, ह्रस्व इति चानुवर्तते । अन्वयः - भ्राजभासभाषदीपजीवमीलपीडामङ्गानाम् उपधायाश्चङि णावन्यतरस्यां ह्रस्वः । अर्थः-भ्राजभासभाषदीपजीवमीलपीडामऽङ्गानाम् उपधायाः स्थाने चङ्परके णौ प्रत्यये परतो विकल्पेन ह्रस्वो भवति । उदाहरणम्धातुः शब्दरूपम् भाषार्थ उसने चमकाया, प्रकाशित किया । (१) भ्राज अबिभ्रजत् अबभ्राजत् उसने चमकाया, प्रकाशित किया । (२) भास अबीभसत् (३) भाष अबीभषत् (४) दीप अदिदीपत् उसने भाषण कराया । उसने चमकाया, प्रकाशित किया । Jain Education International अबभासत् अबभाषत् अदिदीपत् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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