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________________ ३२७ सप्तमाध्यायस्य चतुर्थः पादः धातुः शब्दरूपम् भाषार्थ (५) जीव अजिजिवत् अजिजीलत् उसने जिलाया। (६) मील अमीमिलत् अमिमीलत् उसने निमेष कराया। (७) पीड अपीपिडत् अपिपीडत् उसने दु:ख दिया। आर्यभाषा: अर्थ-(भ्राज०) भ्राज, भास, भाष, दीप, जीव, मील, पीड इन (अङ्गानाम्) अगों की (उपधायाः) उपधा के स्थान में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (ह्रस्व:) ह्रस्वादेश होता है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाग में लिखा है। सिद्धि-अबिभाजत् । यहां 'भाज दीप्तौ' (भ्वा०आ०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से हेतुमान् अर्थ में णिच्' प्रत्यय है। तत्पश्चात् णिजन्त 'भ्राजि' धातु से लुङ्' (३।२।११०) से भूतकाल अर्थ में लुङ्' प्रत्यय है। णिश्रिद्रुभ्य: कर्तरि चङ्' (३।१।४८) से चिल' के स्थान में चङ्' आदेश होता है। इस सूत्र से चपरक णिच्' प्रत्यय परे होने पर 'भाज' के उपधा-आकार को ह्रस्व होता है। सन्वल्लघुनि चङ्परेनग्लोपे (७।४।९३) से सन्वद्भाव होकर सन्यत:' (७।४।७९) से अभ्यास-अकार को इकारादेश होता है। विकल्प-पक्ष में उपधा-आकार को ह्रस्वादेश नहीं है-अबभ्राजत् । (२) अबीभसत् । 'भास दीप्तौ' (भ्वा०आ०)। (३) अबीभषत् । 'भाष व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०आ०)। (४) अदिदीपत् । ‘दीपी दीप्तौ (दि०आ०)। (५) अजिजीवत् । जीव प्राणधारणे' (भ्वा०प०)। (६) अमिमीलत् । 'मील निमेषणे' (भ्वा०प०)। (७) अपिपीडत् । 'पीड अवगाहने (चु०आ०) । लोपादेशः (४) लोपः पिबतेरीच्चाभ्यासस्य।४। प०वि०- लोप: ११ पिबते: ६१ ईत् ११ च अव्ययपदम्, अभ्यासस्य ६।१। । अनु०-अङ्गस्य, णौ, चडि, उपधाया इति चानुवर्तते। अन्वय:-पिबतेरङ्गस्योपधाश्चङि णौ लोपः, अभ्यासस्य ईच्च। अर्थ:-पिबतेरङ्गस्योपधायाश्चङ्परके णौ प्रत्यये परतो लोपो भवति, अभ्यासस्य ईकारादेशश्च भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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