SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-अस्ते: सिजन्ताच्चाऽङ्गाद् उत्तरस्याऽपृक्तस्य सार्वधातुकस्य ईडागमो भवति। उदा०-(अस्ति) स आसीत् । त्वम् आसी: । (सिजन्तम्) अकार्षीत् । असावीत्। अलावीत् । अपावीत् । आर्यभाषा: अर्थ-(अस्तिसिच:) अस्ति=अस् और सिच् जिसके अन्त में है उस (अङ्गात्) अग से परे (अपृक्तस्य) अपृक्त={एकाल् प्रत्यय} (सार्वधातुकस्य) सार्वधातुक-संज्ञक प्रत्यय को (ईट्) ईट् आगम होता है। उदा०-(अस्ति) स आसीत् । वह था। त्वम् आसी: । तू था। (सिजन्त) अकार्षीत् । उसने किया। असावीत् । उसने अभिषवण किया। अलावीत् । उसने काटा। अपावीत् । उसने पवित्र किया। सिद्धि-(१) आसीत् । अस्+लट् । आट्+अस्+त् । आअस्+तिप्। आ+अस्+ शप्+ति। अ+अस्+o+त् । आस्+अस्+ईट्+त्। आ+अस्+ई+त् । आसीत्। यहां 'अस भुवि (अदा०प०) धातु से 'अनद्यतने लङ् (३।२।१११) से लङ्' प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में तिप्' आदेश और इतश्च (३।४।१००) से इसके इकार का लोप होता है। कर्तरि श (३।१।६८) से शप' विकरण-प्रत्यय और 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४७२) से इसका लुक होता है। इस सूत्र से 'अस्” धातु से परे अपृक्त सार्वधातुक त्' 'तिप्' प्रत्यय को ईडागम होता है। 'आटश्च' (६।१८९) से वृद्धिरूप एकादेश होता है। (२) अकार्षीत्। यहां 'डुकृञ् करणे (तना० उ०) धातु से लुङ् (३1२ 1११०) से 'लुङ्' प्रत्यय हे। ति लुडि' (३।१।४३) से चित' प्रत्यय और प्ले: सिच् (३।११४४) से चिल' के स्थान में सिच्' आदेश होता है। इस सूत्र से सिजन्त अङ्ग से अपृक्त सार्वधातुक त्' (तिप्) प्रत्यय को ईडागम होता है। सिचि वृद्धि: परस्मैपदेषु' (७।२।१) से वृद्धि और 'आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से षत्व होता है। (३) असावीत् । पुत्र अभिषवें (स्वा०उ०) धातु से पूर्ववत् । (४) अलावीत् । लुज छेदने (क्रया०उ०)। (५) अपावीत् । पूर्व पवने (क्रया०उ०)। बहुलमीडागमः (६) बहुलं छन्दसि।६७। प०वि०-बहुलम् १।१ छन्दसि ७।१। अनु०-अङ्गस्य, हलि, ईट, सार्वधातुके, अस्तिसिच:, अपृक्ते इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy