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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः
३०३ सिद्धि-(१) उत्तौति । यहां उत्-उपसर्गपूर्वक तु गतिवृद्धिहिंसासु (सौत्रधातुसंस्कृत धातुकोष पृ० ५६) से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में तिप्' आदेश है। इस सूत्र से हलादि सार्वधातुक तिम्' प्रत्यय को ईडागम नहीं होता है। उतो वृद्धि कि हलि' ७।३।८९) से 'तु' को वृद्धि होती है। विकल्प-पक्ष में ईडागम है-उत्तवीति।
(२) उपरौति । उप-उपसर्गपूर्वक 'रु शब्द' (अदा०प०) धातु से पूर्ववत् । विकल्प-पक्ष में ईडागम है-उपरवीति।
(३) उपस्तौति । उप-उपसर्गपूर्वक 'ष्टु स्तुतौं' (अदा०उ०) धातु से पूर्ववत् । विकल्प-पक्ष में ईडागम है-उपस्तवीति ।
(४) शाम्यध्वम् । यहां शमु उपशमें (दि०प०) धातु से लोट् च' (३।३।१६७) से 'लोट्' प्रत्यय है। तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'ध्वम्' आदेश है। यह छान्दस प्रयोग होने से व्यत्ययो बहुलम्' (३।१।८५) से आत्मनेपद होता है। दिवादिभ्यः श्यन् (३।११६९) से श्यन्' विकरण-प्रत्यय और 'शमामष्टानां दीर्घः श्यनि' (७।३।७४) से दीर्घ होता है। विकल्प-पक्ष में ईडागम है-शमीध्वम्। यहां 'बहुलं छन्दसि' (२/४७६) से विकरण-प्रत्यय का लुक होता है। विकरण-प्रत्यय का लुक होने पर ही हलादि सार्वधातुक अनन्तर (समीप) होता है।
(५) अभ्यमति। अभि-उपसर्गपूर्वक 'अम गत्यादिषु' (भ्वा०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय और कर्तरि श (३।१।६८) से 'शप्' विकरण प्रत्यय है। विकल्प-पक्ष में ईडागम है-अभ्यमीति। यहां भी 'बहुलं छन्दसि' (२।४।७६) से विकरण-प्रत्यय का लुक् होता है। विकरण-प्रत्यय का लुक् होने पर ही हलादि सार्वधातुक अनन्तर होता है।
विशेष: (१) 'सार्वधातुके पद की अनुवृत्ति होने पर पुन: 'सार्वधातुके पद का ग्रहण पिति' पद की निवृत्ति के लिये किया गया है।
(२) यह सूत्र छन्दोविषयक है। आपिशल वैयाकरण तरुस्तुशम्यम: सार्वधातुकासु छन्दसि' ऐसा सूत्र पढ़ते हैं। ईडागम:
(५) अस्तिसिचोऽपृक्ते।६६ । प०वि०-अस्ति-सिच: ५ ११ अपृक्ते ७।१।
स०-अस्तिश्च सिच् च एतयो: समाहार:-अस्तिसिच, तस्मात्अस्तिसिच: (समाहारद्वन्द्व:)।
अनु०-अगस्य, ईट्, सार्वधातुके इति चानुवर्तते। अन्वय:-अस्तिसिचोऽङ्गाद् अपृक्तस्य सार्वधातुकस्य ईट् ।
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