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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनच में भी यड का लुक होता है। 'चर्करीतं च इस आदादिक गणसूत्र से यङ्लगन्त को अदादिगण में पठित तथा परस्मैपद माना जाता है। अत: अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप' का लुक होता है। इस सूत्र से यड्लुगन्त लालप्' धातु से परे हलादि पित् सार्वधातुक तिप्' प्रत्यय को ईट् आगम होता है। दीर्घोऽकित:' (७।४।८३) से अभ्यास को दीर्घ होता है। ऐसे ही वद व्यक्तायां वाचि' (भ्वा०प०) धातु से-वावदीति। 6 शब्दे (अदा०प०) धातु से-रोरवीति गणो यङ्लुको.' (७१४१८२) से अभ्यास को गुण होता है।
(२) वर्ति। वृञ् वरणे (स्वा०3०) धातु से पूर्ववत् । विकल्प-पक्ष में ईडागम नहीं है।
(३) चर्ति। डुकृञ् करणे (तनाउ०) धातु से पूर्ववत्। विकल्प-पक्ष में ईडागम नहीं है। ईडागम-विकल्पः
(४) तुरुस्तुशम्यमः सार्वधातुके।६५ । प०वि०-तु-रु-स्तु-शमि-अम: ५।१ सार्वधातुके ७।१।
स०-तुश्च रुश्च स्तुश्च शमिश्च अम् च एतेषां समाहार: तुरुस्तुशम्यम्, तस्मात्-तुरुस्तुशम्यम: (समाहारद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्य, हलि, ईट्, वा इति चानुवर्तते । पितीति च निवृत्तम् । अन्वय:-तुरुस्तुशम्यमोऽङ्गाद् हलादे: सार्वधातुकस्य वा ईट् ।
अर्थ:-तुरुस्तुशम्यमिभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य हलादे: सार्वधातुकस्य विकल्पेन ईडागमो भवति।
उदा०-(तु) स उत्तौति, उत्तवीति । (रु) स उपरौति, उपरवीति । (स्तु) स उपस्तौति, उपस्तवीति । (शमि) यूयं शाम्यध्वम्, शमीध्वम् (मै०सं० ४।१३।४)। (अम्) अभ्यमति । अभ्यमीति।
आर्यभाषा: अर्थ-(तुरुस्तुशम्यम:) तु, रु, स्तु, शमि, अम् इन (अङ्गेभ्य:) अगों से परे (हल:) हलादि (सार्वधातुकस्य) सार्वधातुक-संज्ञक प्रत्यय को (वा) विकल्प से (ईट्) ईट् आगम होता है।
उदा०-(तु) स उत्तौति, उत्तवीति । वह उन्नति करता है। (रु) स उपरौति, उपरवीति । वह शब्द करता है, शोर करता है। (स्तु) स उपस्तौति, उपस्तवीति । वह स्तुति करता है। (शमि) यूयं शाम्यध्वम्, शमीध्वम् (मै०सं० ४।१३।४)। तुम सब शान्त हो जाओ। (अम्) अभ्यमति, अभ्यमीति । वह गति करता है।
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