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________________ सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः २६५ (२) भेदनम् । यहां भिदिर् विदारणे (रुधा०प०) धातु से ल्युट च' (३ ॥३।११५) से भाव-अर्थ में 'ल्युट्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे आर्धधातुक ल्युट्' प्रत्यय परे होने पर लघूपधलक्षण गुण होता है। ऐसे ही छिदिर् द्वैधीकरणे' (रुधा०प०) धातु से-छेदनम् । (३) भेत्ता। यहां पूर्वोक्त भिद्' धातु से 'वुल्तृचौ' (३।१।१३३) से तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे आर्धधातुक तृच्' प्रत्यय परे होने पर लघूपधलक्षण गुण होता है। ऐसे ही पूर्वोक्त छिद्' धातु से-छेत्ता। गुणादेशप्रतिषेधः (४७) नाभ्यस्तस्याचि पिति सार्वधातुके।८७। प०वि०-न अव्ययपदम्, अभ्यस्तस्य ६१ अचि ७ ११ पिति ७।१ सार्वधातुके ७।१। स०-पकारो इद् यस्य स पित्, तस्मिन्-पिति (बहुव्रीहि:)। अनु०-अङ्गस्य, गुणः, लघूपधस्येति चानुवर्तते। अन्वयः-लघूपधस्याभ्यस्तस्याऽङ्गस्येकोऽचि पिति सार्वधातुके गुणो न। अर्थ:-लघूपधस्याऽभ्यस्तसंज्ञकस्याऽङ्गस्येक: स्थानेऽजादौ पिति सार्वधातुके प्रत्यये परतो गुणो न भवति । उदा०-अहं नेनिजानि, अहम् अनेनिजम् । अहं वेविजानि, अहम् अवेविजम् । अहं परिवेविषाणि, अहं पर्यवेविषम्।। आर्यभाषा: अर्थ-(लघूपधस्य) लघु उपधावाले (अभ्यस्तस्य) अभ्यस्त-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग के (इक:) इक् वर्ण के स्थान में (अचि) अजादि (पिति) पित् (सार्वधातुके) सार्वधातुक-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (गुण:) गुण (न) नहीं होता है। ___ उदा०-अहं नेनिजानि । मैं शौच/पोषण करूं। अहम् अनेनिजम्। मैंने शौच/ पोषण किया। अहं वेविजानि। मैं पृथक होऊं। अहम् अवेविजम् । मैं पृथक् हुआ। अहं परिवेविषाणि । मैं सब ओर फैल जाऊं। अहं पर्यवेविषम् । मैं सब ओर फैला। सिद्धि-(१) नेनिजानि। निज+लोट् । नि+ल। नि+मिप्। निज+नि। निज्+आट+नि। निज+शप्+आ+नि। निज+o+आ+नि। निज-निज्+आ+नि। नि-निज्+आ+नि । ने-निज्+आ+नि। नेनिजानि। ____ यहां णिजिर् शौचपोषणयोः' (जु०प०) धातु से 'लोट् च' (३।३।१६२) से 'लोट्' प्रत्यय है। 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में मिप्' आदेश, मेनि:' (३।४।८९) से मि' के स्थान में नि' आदेश, 'आइत्तमस्य पिच्च' (३।४।९२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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