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________________ २६२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् गुणादेशः (४४) सार्वधातुकार्धधातुकयोः।८।। प०वि०-सार्वधातुक-आर्धधातुकयो: ७।२। स०-सार्वधातुकं च आर्धधातुकं च ते सार्वधातुकार्धधातुके, तयो:सार्वधातुकार्धधातुकयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, गुण इति चानुवर्तते। ‘इको गुणवृद्धी' (१।१।३) इति परिभाषया चाऽत्र इक इति षष्ठ्यन्तं पदमुपतिष्ठते। अन्वय:-इकोऽङ्गस्य सार्वधातुकार्धधातुकयोर्गुणः । अर्थ:-इगन्तस्याऽङ्गस्य सार्वधातुके आर्धधातुके च प्रत्यये परतो गुणो भवति। उदा०-(सार्वधातुके) स तरति। स नयति। स भवति । (आर्धधातुके) कर्ता, चेता, स्तोता । आर्यभाषा: अर्थ-{इक:) इक् जिसके अन्त में है उस (अङ्गस्य) अङ्ग को (सार्वधातुकार्धधातुकयो:) सार्वधातुक और आर्धधातुक संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (गुण:) गुण होता है। उदा०-(सार्वधातुक) स तरति । वह तैरता है। स नयति । वह पहुंचाता है। स भवति । वह होता है। (आर्धधातुक) कर्ता। करनेवाला। चेता। चयन करनेवाला। स्तोता । स्तुति करनेवाला। सिद्धि-(१) तरति। यहां तृप्लवनसन्तरणयो:' (भ्वा०प०) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से लट्' प्रत्यय है। कर्तरि शप' (३।१।६८) से शप्' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से सार्वधातुक 'शप्' प्रत्यय के परे होने पर इगन्त तृ' धातु को गुण होता है। तिशित सार्वधातुकम् (३।४।११३) से शप्' प्रत्यय की शित्-लक्षण सार्वधातुक संज्ञा है। ऐसे ही ‘णी प्रापणे' (भ्वा० उ०) धातु से-नयति। 'भू सत्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से-भवति। (२) कर्ता। यहां डुकृञ करणे (तनाउ०) धातु से 'वुल्तृचौं (३।१।१३३) से तृच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से आर्धधातुक तृच्' प्रत्यय परे होने पर इगन्त कृ' धातु को गुण होता है। 'आर्धधातुकं शेषः' (३।४।११४) से तच्' प्रत्यय की शेष-लक्षण आर्धधातुक संज्ञा है। ऐसे ही चिञ् चयने (स्वा०3०) धातु से-चेता। 'ष्टुझ स्तुतौ' (अदा०3०) धातु से-स्तोता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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