________________
२७४
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् निपातनम्
(२१) भुजन्युब्जौ पाण्युपतापयोः ।६१। प०वि०-भुज-न्युब्जौ १।२ पाणि-उपतापयो: ७।२।
स०-भुजश्च न्युब्जश्च तौ भुजन्युजौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। पाणिश्च उपतापश्च तो पाण्युपतापौ, तयोः-पाण्युपतापयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।
अनु०-अङ्गस्य, चजो:, कु:, नेति चानुवर्तते। अन्वय:-पाण्युपतापयोर्भुजन्युब्जौ {अङ्गयोश्चजो: कुन ।
अर्थ:-पाण्युपतापयोरर्थयोर्यथासंख्य भुजन्युब्जशब्दौ निपात्येते, अर्थात्एतयोरङ्गयोश्चकारजकारयो: स्थाने कवगदिशो न भवति ।
___ उदा०-(भुज:) भुज्यतेऽनेनेति भुज: पाणि: । (न्युज:) न्युब्जिता= अधोमुखा: शेरतेऽस्मिन्निति न्युब्ज: उपताप:, रोग इत्यर्थः ।
आर्यभाषा: अर्थ-(पाण्युपतापयो:) पाणि-हाथ और उपताप रोग अर्थ में यथासंख्य (भुजन्युब्जौ) भुज और न्युब्ज शब्द निपातित है अर्थात् इन के (अङ्गयोः) अगों के (चजोः) चकार और जकार के स्थान में (कु:) कवगदिश (न) नहीं होता है।
___ उदा०-(भुज:) भुज:=पाणि (हाथ)। इससे पालन और अभ्यवहार (खानपान) किया जाता है अत: यह 'भुज' कहलाता है। (न्युज:) न्युब्ज: उपताप (रोग)। इसमें लोग अधोमुख पड़े रहते हैं अत: रोग को 'न्युज' कहते हैं।
सिद्धि-(१) भुजः । यहां 'भुज पालनाभ्यवहारयोः' (रुधाoआ०) धातु से 'अकतरि च कारके संज्ञायाम् (३।३।१९) से संज्ञा अर्थ में 'घञ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसके जकार को कवगदिश का प्रतिषेध और पुगन्तलघूपधस्य च' (७१३ १८६) से प्राप्त लघूपधलक्षण गुण का अभाव निपातित है।
(२) न्युजः । यहां नि-उपसर्गपूर्वक 'उब्ज आर्जवें (तु०प०) धातु से पूर्ववत् 'घञ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसके जकार को कवगदिश का प्रतिषेध निपातित है। 'चजो: कु घिण्ण्यतो:' (७।३।५२) से कुत्व प्राप्त था। निपातनम्
(२२) प्रयाजानुयाजौ यज्ञाङ्गे।६२। प०वि०-प्रयाज-अनुयाजौ १।२ यज्ञागे ७।१।
स०-प्रयाजश्च अनुयाजश्च तौ प्रयाजानुयाजौ (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । यज्ञस्य अङ्गमिति यज्ञाङ्गम्, तस्मिन्-यज्ञाझे।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org