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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः (४) मातकम्। यहां उगन्त 'मातृ' शब्द से 'ऋताउञ्ज (४१३१७८) से आगत-अर्थ में ठञ् प्रत्यय प्रत्यय है। ऐसे ही पितृ' शब्द से-पैतृकम् ।
(५) औदश्वित्कः । यहां तकारान्त उदश्वित्' शब्द से 'उदश्वितोऽन्यतरस्याम् (४।२।१८) से संस्कृत अर्थ में ठक्' प्रत्यय है।
(६) याक़त्कः। यहां तकारान्त यकृत्' शब्द से संसृष्टे' (४।४।२२) से संसृष्ट-अर्थ में ठक्' प्रत्यय है। ऐसे ही 'शकृत्' शब्द से-शाकृत्कः । कु-आदेश:
(१२) चजोः कु घिण्ण्यतोः ।।५२।। प०वि०-चजो: ६।२ कु ११ (सु-लुक्) पित्-ण्यतो: ७।२।
स०-चश्च ज् च तौ चजौ, तयो:-चजोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। घ इद् यस्य स चित्, घिच्च ण्यच्च तौ घिण्ण्यतौ, तयो:-धिण्ण्यतो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्येत्यनुवर्तते। अन्वय:-अङ्गस्य चजोर्घिण्ण्यतो: कुः ।
अर्थ:-अङ्गस्य चकार-जकारयोः स्थाने घिति ण्यति च प्रत्यये परत: कवगदिशो भवति ।
उदा०-(घित्) पाक:, त्यागः, राग: । (ण्यत्) पाक्यम्, वाक्यम्, रेक्यम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(अगस्य) अग के (चजो:) चकार और जकार के स्थान में (घिण्ण्यतो:) घित् और ण्यत् प्रत्यय परे होने पर (कु:) कवर्ग आदेश होता है।
उदा०-- (घित्) पाक: । पकाना। त्याग: । छोड़ना। रागः। रंगना। (ण्यत्) पाक्यम् । पकाना चाहिये। वाक्यम् । कहना चाहिये। रेक्यम् । मलशुद्धि करनी चाहिये।
सिद्धि-(१) पाकः । यहां 'डुपचष्' (भ्वा० उ०) धातु से 'भावे' (३।३।१८) से भाव-अर्थ में घन' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे कवर्ग(क) आदेश होता है। अत उपधायाः' (७।२।११६ ) से उपधावृद्धि होती है। ऐसे ही त्यज हानौं' (भ्वा०प०) धातु से त्यागः । 'रज रागें (भ्वा०उ०) धातु से-रागः । 'घमि च भावकरणयोः' (६ ।४।२७) से रज्ज्' के नकार का लोप होता है।
(२) पाक्यम् । यहां पूर्वोक्त 'पच्' धातु से 'ऋहलोर्ण्यत् (३।१।१२४) से 'ण्यत्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे कवर्ग (क) अदेश होता है। अत उपधायाः' (७।२।११६) से उपधावृद्धि होती है। ऐसे ही विच परिभाषणे' (अदा०प०) धातु से-वाक्यम् । 'रिचिर् विरेचने (रुधा०उ०) धातु से-रेक्यम् ।
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