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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः सिद्धि-(१) नद्यैः । नदी+भिस् । नदी+ऐस् । नद्यैस् । नद्यैः ।
यहां नदी' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से भिस्' प्रत्यय है। इस सूत्र में बहुलवचन से ईकारान्त नदी' शब्द से उत्तर भी भिस्' को ऐस्' आदेश होता है।
(२) देवेभिः । देव+भिस् । देव ए+भिस् । देवेभिस् । देवेभिः ।
यहां देव' शब्द से पूर्ववत् भिस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से बहुलवचन से 'अतो भिस ऐस' (७।१।९) से अकारान्त अग से उत्तर भिस्' को विहित एस्' आदेश नहीं होता है। 'बहुलवचने झल्येत्' (७।३।१०३) से एकार आदेश होता है। व्याकरणशास्त्र में बहुलवचन से लक्षण व्यभिचरित हो जाते हैं। ऐसादेश-प्रतिषेधः
(११) नेदमदसोरकोः ।११। प०वि०-न अव्ययपदम्, इदमदसो: ६।२ अको: ६।२।
स०-इदम् च अदस् च तौ इदमदसौ, तयो:-इदमदसो: (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अविद्यमान: ककारो ययोस्तौ-अकौ, तयो:-अको: (बहुव्रीहिः)।
अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, भिस:, ऐस् इति चानुवर्तते। अन्वय:-अकोरिदमदसोर्भिस: प्रत्ययस्य ऐस् न ।
अर्थ:-अको:=ककारवर्जितयोरिदमदसो: सम्बन्धिनो भिस: प्रत्ययस्य स्थाने ऐसादेशो न भवति।
उदा०-(इदम्) एभिः। (अदस्) अमीभिः ।
आर्यभाषा अर्थ-(अको:) ककार से रहित (इदमदसो:) इदम् और अदस् सम्बन्धी (भिस:) भिस् (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के स्थान में (एस्) ऐस् आदेश (न) नहीं होता है।
उदा०-(इदम्) एभिः । इनके द्वारा। (अदस्) अमीभिः। उनके द्वारा।
सिद्धि-(१) एभिः । इदम्+भिस्। इद अ+भिस् । इद+भिस् । अ+भिस् । ए+भिस् । एभिस् । एभिः ।
यहां 'इदम्' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से 'भिस्' प्रत्यय है। त्यदादीनाम:' (७।२।१०२) से मकार को अकार आदेश, 'अतो गुणे (६।१।९६) से पररूप अकार आदेश (अ+अ=अ) और हलि लोप:' (७।२।११३) से 'इद्' भाग का लोप होता है। 'अ+भिस्' इस स्थिति में 'अतो भिस् ऐस्' (७।१।९) से भिस्' को ऐस्' आदेश प्राप्त है। इस सूत्र से ककार-रहित इदम्' सम्बन्धी भिस्' को 'ऐस्' आदेश नहीं होता है। बहुवचने झल्येत्' (७।३।१०३) से 'अकार' को एकार आदेश होता है।
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