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________________ सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः २५५ आर्यभाषा: अर्थ-हितुभये) हेतु से भय अर्थ में विद्यमान (भियः) भी इस (अङ्गस्य) अङ्ग को (णौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (पुक्) पुक् आगम होता है। उदा०-मुण्डो भीषयते माणवकम् । शिरोमण्डित पुरुष बालक को डराता है। जटिलो भीषयते माणवकम् । जटाधारी पुरुष बालक को डराता है। सिद्धि-भीषयते । यहां जिभी भये (जु०प०) धातु से हतुमति च' (३।१।२६) से हेतुमान् अर्थ में णिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे 'पुक्’ आगम होता है। आदेशप्रकरणम् व-आदेश: (१) स्फायो वः।४१। प०वि०-स्फाय: ६१ व: ११ ॥ अनु०-अङ्गस्य, णाविति चानुवर्तते । अन्वय:-स्फायोऽङ्गस्य णौ वः । अर्थ:-स्फायोऽङ्गस्य णौ प्रत्यये परतो वकारादेशो भवति। उदा०-स स्फावयति धनम्। आर्यभाषा: अर्थ-(स्फाय:) स्फाय इस (अगस्य) अङ्ग को (गौ) णिच् प्रत्यय परे होने पर (व:) वकारादेश होता है। उदा०-स स्फावयति धनम् । वह धन को बढ़ाता है। सिद्धि-स्फावयति। यहां 'स्फायी वृद्धौ (भ्वा०आ०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इसे वकार अन्त्य आदेश होता है। त-आदेश: (२) शदेरगतौ तः।४२। प०वि०-शदे: ६१ अगतौ ७।१ त: १।१। स०-न गतिरिति अगति:, तस्याम्-अगतौ (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-अङ्गस्य, णाविति चानुवर्तते। अन्वय:-अगतौ शदेरङ्गस्य णौ त:। अर्थ:-गत्यर्थवर्जितस्य शदेरङ्गस्य णौ प्रत्यये परतस्तकारादेशो भवति। उदा०-सा पुष्पाणि शातयति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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