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सप्तमाध्यायस्य तृतीयः पादः
२४६
उदा०- (चिण्) अशमि भवता । अतमि भवता । अदमि भवता । ( कृत्) शमक: । तमक: । दमकः । शमः । तमः । दमः ।
आर्यभाषाः अर्थ- (अनाचमे:) आङ्पूर्वक चमु धातु से भिन्न (उदात्तोपदेशस्य ) उपदेश में उदात्त (मान्तस्य ) मकारान्त ( अङ्गस्य) अङ्ग को (चिणि) चिण् और (ञ्णिति) ञित्, णित् (कृति) कृत्-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (न) जो कहा गया है वह नहीं होता है, अर्थात् 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६ ) से विहित उपधावृद्धि नहीं होती है।
उदा०- - ( चिण्) अशमि भवता । आपके द्वारा उपशमन किया गया। अतमि भवता । आपके द्वारा आकाङ्क्षा की गई । अदमि भवता । आपके द्वारा दमन किया गया। (कृत्) शमक: । उपशमन करनेवाला । तमक: । आकाङ्क्षा करनेवाला । दमकः । दमन करनेवाला । शमः । उपशमन करना । तमः । आकाङ्क्षा करना । दमः । दमन करना ।
सिद्धि - (१) अशमि । यहां 'शमु उपशमें' ( दि०प०) धातु से 'लुङ्' (३ ।२ ।११० ) से 'लुङ्' प्रत्यय है 'चिण् भावकर्मणोः' (३|१ |६६ ) से चिल' के स्थान में चिण्' आदेश है। इस सूत्र से 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६ ) से प्राप्त उपधावृद्धि का प्रतिषेध होता है । 'चिणो लुक्' (६।४।१०४) से 'त' प्रत्यय का लुक् होता है। ऐसे ही 'तमु काङ्क्षायाम्' ( दि०प०) धातु से - अतमि । 'दमु उपशमें' (दि०प०) धातु से - अदमि ।
(२) शमक: । यहां 'शमु उपशमें' ( दि०प०) धातु से 'वुल्तृचौ' (३ । १ । १३३) से 'ण्वुल्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पूर्ववत् प्राप्त उपधावृद्धि का प्रतिषेध होता है। ऐसे ही पूर्वोक्त 'तमु' धातु से - तमक: और 'दमु' धातु से - दमक: ।
(३) शम: । यहां पूर्वोक्त 'शमु' धातु से 'भावें' (३ । ३ । १८ ) से भाव - अर्थ में ‘घञ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पूर्ववत् प्राप्त उपधावृद्धि का प्रतिषेध होता है। ऐसे ही पूर्वोक्त 'तमु' धातु से - तम: और 'दमु' धातु से - दमः ।
ये 'शमु' आदि मकारान्स धातु पाणिनीय धातुपाठ के उपदेश में उदात्त (सेट) पठित हैं।
उक्तप्रतिषेधः
(३) जनिवध्योश्च । ३५ ।
प०वि० - जनिवध्योः ६।२ च अव्ययपदम्।
स०-जनिश्च वधिश्च तौ जनिवधी, तयो:-जनिवध्योः (इतरेतर
योगद्वन्द्वः) ।
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