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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-अङ्गस्य, वृद्धि:, ञ्णिति, चिण्कृतो:, नेति चानुवर्तते । अन्वयः-जनिवध्योरङ्गयोश्च चिणि ञ्णिति कृति च न । अर्थ:-जनिवध्योरङ्गयोश्च चिणि ञिति णिति कृति च प्रत्यये परतो यदुक्तं तन्न भवति । 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६) इति विहिता उपधावृद्धिर्न भवतीत्यर्थः । २५० उदा०- (चिण्) जनि:-अजनि भवता । वधि:- अवधि भवता । (कृत्) जनि:- जनकः । प्रजनः । वधि:- वधक: । वधः ! आर्यभाषाः अर्थ- (जनिवध्योः) जनि, वधि इन (अङ्गयोः) अङ्गों को (च) भी (चिणि) चिण् और (गति) ञित्, णित् (कृति) कृत्-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (न) जो कहा गया है वह नहीं होता है, अर्थात् 'अत उपधाया:' ( ७ । २ । ११६ ) से विहित उपधावृद्धि नहीं होती है। उदा०- - (चिण् ) जनि-अजनि भवता । आपके द्वारा उत्पन्न किया गया। वधिअवधि भवता । आपके द्वारा वध (हत्या) किया गया। (कृत् ) जनि - जनकः । उत्पन्न करनेवाला । प्रजनः । उत्पन्न करना । वधि-वधक: । वध= हत्या करनेवाला । वधः । वध करना । सिद्धि - (१) अजनि । यहां 'जनी प्रादुर्भावि' ( दि०आ०) धातु से 'लुङ्' (३ / २ /११० ) से 'लु' प्रत्यय है । 'चिण् भावकर्मणोः ' ( ३ | १/६६ ) से 'चिल' के स्थान में 'चिण्' आदेश है। इस सूत्र से 'अत उपधाया:' (७ । २ । ११६ ) से प्राप्त उपधावृद्धि का प्रतिषेध होता है। 'चिणो लुक्' (६/४/९०४) से 'त' प्रत्यय का लुक् होता है। ऐसे ही 'वध हिंसायाम्' (भ्वादि, पदमञ्जरी) धातु से - अवधि । (२) जनक: । यहां पूर्वोक्त 'जन्' धातु से 'वुल्तृचौं' (३ | १ | १३३ ) से 'वुल्' प्रत्यय है। सूत्र - कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही पूर्वोक्त 'वध' धातु से - वधक: । (३) प्रजन: । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक 'जन्' धातु से 'भावें' (३ | ३|१८ ) से भाव - अर्थ में 'घञ्' प्रत्यय है। सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही पूर्वोक्त 'वधू' धातु से - वधः । विशेष: हनो वध लिङि' (२१४ /४३) से 'हन्' के स्थान में विहित 'वध' आदेश अकारान्त है, उसे उपधावृद्धि प्राप्त नहीं होती है, अतः यहां उसका ग्रहण नहीं किया गया है। 'वध हिंसायाम्' यह पृथक् धातु है. उसका यहां ग्रहण किया जाता है। जैसे 'ण्वुल्' प्रत्यय में भी 'वध' धातु का प्रयोग देखा जाता है भक्षकश्चेन्न विद्येत वधकोऽपि न विद्यते । । अर्थ-यदि मांसभक्षक न हो तो प्राणियों का कोई वधक (घातक) भी न रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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