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________________ २२८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ-(दिश:) दिशावाची पूर्वपद से परे (अमद्रस्य) मद्र से भिन्न (जनपदस्य) जनपदवाची (अङ्गस्य) अग के (उत्तरपदस्य) उत्तरपद के (अचाम्) अचों में से (आदे:) आदिम (अच:) अच् के स्थान में (तद्धिते) तद्धित-संज्ञक (ञ्णिति) जित्, णित् और (किति) कित् प्रत्यय परे होने पर (वृद्धि:) वृद्धि होती है। उदा०-पूर्वपाञ्चालकः । पूर्व पञ्चाल में होनेवाला । अपरपाञ्चालकः । अपर (पश्चिम) पञ्चाल में होनेवाला। दक्षिणपाञ्चालक: । दक्षिण पञ्चाल में होनेवाला। सिद्धि-(१) पूर्वपाञ्चालकः । यहां 'पूर्व' और 'पञ्चाल' शब्दों का तद्धितार्थोत्तरपदसमाहारे च' (२।१।५०) से तद्धितार्थ में कर्मधारय तत्पुरुष समास है। 'अवृद्धादपि बहुवचनविषयात् (४।२।१२५) से भव-अर्थ में वुञ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पञ्चाल' उत्तरपद को आदिवृद्धि होती है। ऐसे ही-अपरपाञ्चालकः, दक्षिणपाञ्चालकः । विशेषः पञ्चाल जनपद के तीन हिस्से थे-पूर्वपञ्चाल, अपरपञ्चाल और दक्षिणपञ्चाल। महाभारत के अनुसार दक्षिण और उत्तर पञ्चाल के बीच गंगा-नदी सीमा थी। एटा-फर्रुखाबाद के जिले दक्षिण-पञ्चाल थे। ज्ञात होता है कि उत्तर-पञ्चाल के भी पूर्व और अपर दो भाग थे, दोनों को रामगंगा नदी बांटती थी। ये ही व्याकरण के पूर्वपञ्चाल और अपरपञ्चाल हैं। इसी प्रकार समस्त जनपद अथवा उसके आधे भाग के वाचक नाम भाषा में प्रचलित थे-सर्वपञ्चाल, अर्धपञ्चाल (पाणिनिकालीन भारतवर्ष पृ० ५८)। उत्तरपदवृद्धिः (१४) प्राचां ग्रामनगराणाम् ।१४। प०वि०-प्राचाम् ६ ।३ ग्राम-नगराणाम् ६।३। स०-ग्रामाश्च नगराणि च तानि ग्रामनगराणि, तेषाम्-ग्रामनगराणाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व)। अनु०-अङ्गस्य, वृद्धि:, अच:, णिति, तद्धितेषु, अचाम्, आदे:, किति, उत्तरपदस्य, दिश इति चानुवर्तते। अन्वय:-दिश: प्राचां ग्रामनगराणाम् अङ्गानाम् उत्तरपदानामचामादेरचस्तद्धिते णिति किति च वृद्धिः । ___ अर्थ:-दिग्वाचिन: शब्दाद् उत्तरेषां प्राचां देशे वर्तमानानां ग्रामवाचिनां नगरवाचिनां चोत्तरपदानामचामादेरच: स्थाने, तद्धिते जिति णिति किति च प्रत्यये परतो वृद्धिर्भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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