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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः २१३ अर्थ:-अङ्गस्याऽचामादेरचस्तद्धिते निति णिति च प्रत्यये परतो वृद्धिर्भवति। उदा०-जिति-गार्य: । वात्स्य: । दाक्षि: । प्लाक्षि: । णिति-औपगवः । कापटवः। आर्यभाषा: अर्थ-(अङ्गस्य) अङ्ग-सम्बन्धी (अचाम्) अचों में से (आदे:) आदि के (अच:) अच् के स्थान में (तद्धिते) तद्धित-संज्ञक (ग्गिति) जित् और णित् प्रत्यय परे होने पर (वृद्धि:) वृद्धि होती है। उदा०-चित्-गार्य:। गर्ग का पौत्र । वात्स्यः । वत्स का पौत्र। दाक्षिः। दक्ष का पुत्र। प्लाक्षि: । प्लक्ष का पुत्र। णित-औपगवः । उपगु का पुत्र । कापटव: । कपटु का पुत्र। सिद्धि-(१) गार्य:। यहां 'गर्ग' शब्द से 'गर्गादिभ्यो यज्ञ (४।१।१०५) से गोत्रापत्य अर्थ में तद्धित-संज्ञक यज्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस प्रत्यय के जित् होने से गर्ग' अङ्ग के आदिम अच् (अ) को वृद्धि होती है। 'वत्स' शब्द से-वात्स्यः । (२) दाक्षिः। यहां दक्ष' शब्द से 'अत इ (४।१।९५) से अपत्य-अर्थ में 'इञ्' प्रत्यय है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। प्लक्ष' शब्द से-प्लाक्षिः । (३) औपगवः । यहां उपगु' शब्द से तस्यापत्यम्' (४।१।९२) से तद्धित-संज्ञक 'अण्' प्रत्यय है। 'ओर्गुणः' (७।४।१४६) से अङ्ग को गुण होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। 'कपटु' शब्द से-कापटवः । आदिवृद्धिः (५) किति च।११८ । प०वि०-किति ७१ च अव्ययपदम्। स०-क इद् यस्य स कित्, तस्मिन्-किति (बहुव्रीहि:)। अनु०-अङ्गस्य, वृद्धि, अच:, तद्धितेषु, अचाम्, आदेः, इति चानुवर्तते। अन्वय:-अङ्गस्याऽचामादेर्चस्तद्धिते किति वृद्धिः। अर्थ:-अङ्गस्याऽचामादेरच: स्थाने तद्धिते किति प्रत्यये परतो वृद्धिर्भवति। उदा०-'नडादिभ्य: फक्' (४।१।९९) नाडायन:, चारायणः । 'प्राग्वहतेष्ठक् (४।४।१) आक्षिक:, शालाकिकः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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