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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः २०५ उदा०- (त्यद्) तकार के स्थान में - स्य: । वह । (तद्) स: । वह । ( एतद् ) एषः । यह । (अदस्) दकार के स्थान में - असौ । वह । सिद्धि - स्यः | यहां 'त्यद्' शब्द से 'स्वौजस०' (४ । १ । २ ) से 'सु' प्रत्यय है । इस सूत्र से इस 'सु' विभक्ति के परे होने पर 'त्यद्' के अनन्त्य तकार को सकार आदेश होता है । 'त्यदादीनाम:' ( ७ । २ । १०२ ) से अकारादेश है। ऐसे ही 'तद्' शब्द से - सः, 'एतद्' शब्द से - एष:, 'अदस्' शब्द से - असौ । 'अदस औ सुलोपश्च' (७ । ३ । १०७ ) से 'अदस्' के सकार को 'औ' आदेश और सु' का लोप होता है। औ-आदेशः (सु-लोपः ) - (२६) अदस औ सुलोपश्च । १०७ । प०वि० - अदसः ६।१ औ १।१ ( सु- लुक् ) सुलोपः १।१ च अव्ययपदम् । स०- सोर्लोप इति सुलोपः (षष्ठीतत्पुरुषः ) । अनु० - अङ्गस्य, विभक्तौ, साविति चानुवर्तते । अन्वयः - अदसोऽङ्गस्य सौ विभक्तौ औ: सुलोपश्च । अर्थ:- अदसोऽङ्गस्य सौ विभक्तौ परत औकारादेशो भवति, सोश्च लोपो भवति । उदा० - असौ । आर्यभाषाः अर्थ-(अदसः) अदस् इस (अङ्ग्ङ्गस्य) अङ्ग को (सौ) सु इस (विभक्तौ) विभक्ति के परे होने पर (औ: ) औकार आदेश होता है (च) और (सुलोपः ) सुका लोप होता है। उदा० - असौ । वह । सिद्धि-असौ । अदस्+सु । अद औ+स् । अस औ+स् । असौ+0। असौ । यहां 'अदस्' शब्द से 'स्वौजस० ' ( ४ । १ । २ ) से 'सु' प्रत्यय है । इस सूत्र से इस 'सु' विभक्ति के परे होने पर 'अदस्' के अन्त्य सकार को औकार आदेश और 'सु' का लोप होता है । 'तदो: स: सावनन्त्ययो: ' ( ७ । २ । १०६ ) से 'अदस्' से अनन्त्य दकार को सकार आदेश होता है। म- आदेश: (३०) इदमो मः | १०८ | प०वि० - इदम: ६ । १ मः १ । १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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