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सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः
२०१ अकार-आदेश:
(२४) त्यदादीनामः ॥१०२। प०वि०-त्यद्-आदीनाम् ६।३ अ: १।१। स०-त्यद् आदिर्येषां ते त्यदादयः, तेषाम्-त्यदादीनाम् (बहुव्रीहिः) । अनु०-अङ्गस्य, विभक्ताविति चानुवर्तते। अन्वय:-त्यदादीनामङ्गानां विभक्तौ अ: । अर्थ:-त्यदादीनामङ्गानां स्थाने विभक्तौ परतोऽकारादेशो भवति ।
उदा०-(त्यद्) स्य:, त्यौ, त्ये। (तद्) स:, तौ, ते। (यद्) य:, यौ, ये। (एतद्) एषः, एतौ, एते। (इदम्) अयम्, इमो, इमे। (अदस्) असौ, अमू, अमी। (द्वि) द्वौ, द्वाभ्याम्। ___एते त्यदादयः शब्दाः सर्वादिगणे पठ्यन्ते। 'द्विपर्यन्तानां त्यदादीनामत्वमिष्यते, इह न भवति, भवत्-भवान् (काशिका)।
आर्यभाषा अर्थ- (त्यदादीनाम्) त्यद् आदि (अङ्गानाम्) अगों को (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (अ:) अकार आदेश होता है।
उदा०-(त्यद्) स्य:। वह। त्यौ। वे दोनों। त्ये। वे सब। (तद्) स:। वह। तौ। वे दोनों। ते। वे सब। (यद्) य: । जो। यौ। जो दोनों। ये। जो सब। (एतद्) एषः। यह। एतौ। ये दोनों। एते। ये सब। (इदम्) अयम् । यह। इमौ। ये दोनों। इमे। ये सब। (अदस्) असौ । वह। अमू। वे दोनों। अमी। वे सब। (द्वि) द्वौ। दो। द्वाभ्याम् । दो के द्वारा।
ये त्यद्' आदि शब्द सर्वादिगण में पठित हैं। यहां त्यद्' से लेकर द्वि' पर्यन्त शब्दों का ग्रहण किया जाता है।
सिद्धि-(१) स्य: । त्यद्+सु । त्य अ+स् । स्य अ+स् । स्यस्। स्यः ।
यहां त्यद्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'सु' विभक्ति के परे होने पर त्यद्' अन्त्य दकार को अकार आदेश होता है। अतो गुणे (६।१।९६) से पररूप एकादेश और तदो: स: सावनन्त्ययो:' (७।२।१०६) से तकार को सकार आदेश होता है। द्विवचन में-त्यौ । बहुवचन में-त्ये।
ऐसे ही तद्' शब्द से-स:, तौ, ते। यद्' शब्द से-य:, यौ, ये। एतद्' शब्द से-एषः, एतौ, एते।
(२) अयम् । यहां इदम्' शब्द से पूर्ववत् सु' प्रत्यय है। इदमो म:' (७।२।१०८) से 'इदम्' के मकार के स्थान में मकार आदेश होता है। यह त्यदादीनाम:' (७।२।१०२)
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