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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् जरसादेश-विकल्पः
(२३) जराया जरसन्यतरस्याम् ।१०१। प०वि०-जराया: ६।१ जरस् ११ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, अचीति चानुवर्तते। अन्वय:-जराया अङ्गस्याऽचि विभक्तावन्यतरस्यां जरस्।
अर्थ:-जराया अङ्गस्य स्थानेऽजादौ विभक्तौ परतो विकल्पेन जरसादेशो भवति।
उदा०-जरसा दन्ता: शीर्यन्ते, जरया दन्ता: शीर्यन्ते। जरसे त्वा परिदद्युः, जरायै त्वा परिदद्युः।
आर्यभाषा: अर्थ-(जरायाः) जरा इस (अङ्गस्य) अङ्ग के स्थान में (अचि) अजादि (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (जरस्) जरस् आदेश होता है।
उदा०-जरसा दन्ता: शीर्यन्ते, जरया दन्ताः शीर्यन्ते। जरा (बुढ़ापा) से दांत शीर्ण हो जाते हैं। जरसे त्वा परिदाः, जरायै त्वा परिदधुः। वे तुझे जरा के लिये परिदान करें अर्थात् तू जरा-अवस्था तक जीवित रह।।
सिद्धि-जरसा। जरा+टा। जरा+आ। जरस्+आ। जरसा।
यहां 'जरा' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से टा' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस अजादि टा (आ) प्रत्यय परे होने पर जरा' के स्थान में जरस्' आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में जरस्' आदेश नहीं है-जरया। 'आङि चाप:' (७।३।१०५) से एकार आदेश और एचोऽयवायाव:' (६।१७७) से इसे अय् आदेश होता है। ऐसे ही डे' विभक्ति में-जरसे। विकल्प-पक्ष में-जरायै। याडाप:' (७।३।१०५) से याट्' आगम और वृद्धिरेचि (६।११८७) से वृद्धिरूप एकादेश (अ+ए=ऐ) होता है।
जरा शब्द के समस्त रूप विभक्ति एकवचन द्विवचन बहुवचन प्रथमा जरा
जरे (जरसौ) जरा: (जरसः) द्वितीया जराम् (जरसम्) जरे (जरसौ) जरा: (जरस:) तृतीया जरया (जरसा) जराभ्याम् जराभिः। जरायै (जरसे) जराभ्याम्
जराभ्यः जराया: (जरस:) जराभ्याम्
जराभ्यः षष्ठी जराया: (जरस:) जरयोः (जरसो:) जराणाम् (जरसाम्) सप्तमी जरायाम् (जरसि) जरयोः (जरसो:) जरासु सम्बोधन हे जरे ! हे जरे (जरसौ)! हे जरा: (जरस:) ! जरा वृद्धावस्था इत्यर्थः ।
चतुर्थी
पञ्चमी
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