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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः ૧૬૬ अर्थ:-तिसृचतस्रोरङ्गयोर्ऋकारस्य स्थानेऽजादौ विभक्तौ परतो रेफादेशो भवति। उदा०-(तिस) तिस्र: कन्यास्तिष्ठन्ति । तिस्र: कन्या: पश्य । प्रियतिस्र आनय। प्रियतिस्रः स्वम् । प्रियतिनि निधेहि। (चतसृ) चतस्र: कन्यास्तिष्ठन्ति । चतस्र: कन्या: पश्य । प्रियचतस्र आनय । प्रियचतस्रः स्वम्। प्रियचतस्रि निधेहि। आर्यभाषा: अर्थ-(तिसृचतस्रो:) तिसृ, चतसृ इन (अङ्गयो:) अङ्गों के (ऋत:) ऋकार के स्थान में (अचि) अजादि (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर (र:) रेफ आदेश होता है। उदा०-(तिसृ) तिस्र: कन्यास्तिष्ठन्ति । तीन कन्यायें खड़ी है। तिस्र: कन्या: पश्य । तू तीन कन्याओं को देख । प्रियतिस्र आनय । तू तीन प्रियावाले पुरुष को इधर ला। प्रियतिस्रः स्वम् । यह तीन प्रियाओंवाले पुरुष का धन है। प्रियतिस्त्रि निधेहि। तू इसे तीन प्रियाओंवाले पुरुष में रख । (चतसृ) चतस्र: कन्यास्तिष्ठन्ति । चार कन्यायें खड़ी हैं। चतस्र: कन्या: पश्य । तू चार कन्याओं को देख। प्रियचतस्र आनय । तू चार प्रियाओंवाले पुरुष को इधर ला। प्रियचतस्रः स्वम् । यह चार प्रियाओंवाले पुरुष का धन है। प्रियचतनि निधेहि । तू इसे चार प्रियाओंवाले पुरुष में रख। सिद्धि-(१) तिस्रः । तिसृ+जस्। तिसृ+अस् । तिस्र+अस् । तिस्त्रस् । तिस्रः । यहां तिसृ' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से जस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से अजादि विभक्ति (जस्) के परे होने पर तिसृ' के ऋकार को रेफ आदेश होता है। 'इको यणचि' (६।११७६) से भी यह रेफ आदेश सम्भव है किन्तु प्रथमयोः पूर्वसवर्ण:' (६।१।१००) से प्राप्त पूर्वसवर्ण के प्रतिषेध के लिये यह रेफ आदेश का विधान किया गया है। शस् प्रत्यय में-तिस्र: कन्या: पश्य। ऐसे ही चतसृ' शब्द से-चतस्रः। ऐसे ही-प्रियचतस्रः । प्रिय और तिसृ तथा चतसृ शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। 'स्त्रिया: पुंवद्' (६।३।३४) से पुंवद्भाव होता है। (२) प्रियतिस्रः स्वम् । प्रियतिसृ+डस् । प्रियतिसृ+अस् । प्रियतिस्+अस् । प्रियतिस्रस्। प्रियतिस्रः। यहां प्रियतिसृ' शब्द से पूर्ववत् ‘डस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस अजादि विभक्ति (डस्) के परे होने पर प्रियतिस' के ऋकार को रेफ आदेश होता है। ऋत उत (६।१।१०९) से प्राप्त उकार आदेश नहीं होता है। ऐसे ही डि-प्रत्यय में-प्रियतिस्त्रि। ऋतो डिसर्वनामस्थानयोः' (७।३।११०) से प्राप्त गुण नहीं होता है। ऐसे ही-प्रियचतस्रः, प्रियचतस्त्रि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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