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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् का अपवाद है। 'इदोऽय् पुंसि' (७।२।१११) से 'इदम्' के 'इद्' भाग को 'अय्' आदेश होता है।
(३) इमौ । यहां इदम्' शब्द से पूर्ववत् 'औ' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'औ' विभक्ति के परे होने पर इदम्' के अन्त्य मकार को अकार आदेश होता है। 'दश्च' (७।२।१०९) से दकार को मकार आदेश है। प्रथमयो: पूर्वसवर्णः' (६।१।१०२) से पूर्वसवर्ण दीर्घ प्राप्त होने पर नादिचि' (६।१।१०४) से उसका प्रतिषेध होकर वृद्धिरेचि (६।१८८) से पूर्व-पर के स्थान में वृद्धि रूप एकादेश (अ+औ=औ) होता है। जस् प्रत्यय में-इमे। जस: शी' (७।१।१७) से 'जस्' को 'शी' आदेश है।
(४) असौ। यहां 'अदस्' शब्द से पूर्ववत् 'सु' प्रत्यय है। 'अदस औ सुलोपश्च (७।२।१०७) से 'अदस्' के सकार को आकार आदेश और 'सु' प्रत्यय का लोप होता है। तदो: स: सावनन्त्ययोः' (७।२।१०६) से 'अदस्' के दकार को सकार आदेश होता है।
(५) अमू। यहां 'अदस्' शब्द से पूर्ववत् 'औ' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'औ' विभक्ति के परे होने पर 'अदस्' के अन्त्य सकार को अकार आदेश होता है। अद अ+औ। इस स्थिति में 'अतो गुणे (६।१।९७) से पररूप एकादेश और वृद्धिरेचि' (६।१।८७) से वृद्धिरूप एकादेश होकर 'अदसोऽसेर्दादु दो म:' (८।२।८०) से दकार को मकार तथा औकार को ऊकार आदेश होता है।
(६) अमी। यहां 'अदस्' शब्द से पूर्ववत् जस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस जस्' विभक्ति के परे होने पर 'अदस्' के अन्त्य सकार को अकार आदेश होता है। 'जस: शी' (७।१।१७) से जस्' के स्थान में 'शी' आदेश, 'आद्गुणः' (६।१।८७) से गणरूप एकादेश एकार होकर 'एत ईद् बहुवचने (८।२।८१) से एकार को ईकार आदेश होता है।
(७) द्वौ। यहां 'द्वि' शब्द से पूर्ववत् 'औ' प्रत्यय है। इस सूत्र से इस 'औ' विभक्ति के परे होने पर द्वि' शब्द के अन्त्य इकार को अकार आदेश होता है। 'भ्याम्' प्रत्यय में-द्वाभ्याम् । 'सुपि च' (७।४।१०२) से दीर्घ है। क-आदेश:
(२५) किमः कः ।१०३। प०वि०-किम: ६।१ क: ११ । अनु०-अङ्गस्य, विभक्ताविति चानुवर्तते। अन्वय:-किमोऽङ्गस्य विभक्तौ कः। अर्थ:-किमोऽङ्गस्य स्थाने विभक्तौ परत: कादेशो भवति । उदा०-क:, कौ, के।
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