SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १६७ (३) त्वद्यति। यहां युष्मद्' शब्द से 'सुप आत्मन: क्यच् (३ 1१1८) से इच्छा-अर्थ में 'क्यच्' प्रत्यय है। सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मंद्' शब्द से - मद्यति । (४) त्वद्यते। यहां 'युष्मद्' शब्द से 'कर्तुः क्यङ् सलोपश्च' (३ | १|११) से आचार - अर्थ में 'क्यङ्' प्रत्यय है। प्रत्यय के ङित् होने से 'अनुदात्तङित आत्मनेपदम् ' ( १ । ३ । १२) से आत्मनेपद होता है। सूत्र - कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से- मद्यते । (५) त्वत्पुत्रः । यहां 'युष्मद्' और 'पुत्र' शब्दों का षष्ठी (२/२1८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'पुत्र' शब्द उत्तरपद होने पर 'युष्मद्' के म- पर्यन्त के स्थान में 'त्व' आदेश होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - मत्पुत्रः । (६) त्वन्नाथ: । यहां युष्मद् और नाथ शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।२४) से. बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से 'नाथ' शब्द उत्तरपद होने पर 'युष्मद्' के म- पर्यन्त के स्थान में 'त्व' आदेश होता है। विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी सप्तमी विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी सप्तमी Jain Education International युष्मद् शब्द के समस्त रूप एकवचन द्विवचन त्वम् युवाम् त्वाम् युवाम् त्वया तुभ्यम् त्वत् तव त्वयि युवाभ्याम् युवाभ्याम् युवाभ्याम् युवयोः युवयोः अस्मद् शब्द के समस्त रूप एकवचन द्विवचन अहम् आवाम् माम् आवाम् मया आवाभ्याम् आवाभ्याम् आवाभ्याम् आवयोः आवयोः मह्यम् मत् मम मयि For Private & Personal Use Only बहुवचन यूयम् । युष्मान् । युष्माभिः । युष्मभ्यम् । युष्मत् । युष्माकम् । युष्मासु । बहुवचन वयम् । अस्मान् । अस्माभिः । अस्मभ्यम् । अस्मत् । अस्माकम् । अस्मासु । www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy