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________________ १६५ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः अर्थ:-युष्मदस्मदोरङ्गयोर्मपर्यन्तस्य स्थाने एकवचने विभक्तौ परतो यथासंख्यं त्वमावादेशौ भवतः। उदा०- (युष्मद्) त्वाम् । त्वया। त्वत्। त्वयि । (अस्मद्) माम्। मया। मत्। मयि। आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मदो:) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गयो:) अगों के (मपर्यन्तस्य) मकार पर्यन्त के स्थान में (एकवचने) एकवचन विषयक (विभक्तौ) विभक्ति परे होने पर यथासंख्य (त्वमौ) त्व, म आदेश होते हैं। उदा०-(युष्मद्) त्वाम् । तुझ को। त्वया। तेरे द्वारा। त्वत् । तुझ से। त्वयि । तुझ में। (अस्मद्) माम् । मुझ को। मया। मेरे द्वारा। मत् । मुझ से। मयि । मुझ में। सिद्धि-(१) त्वाम् । यहां युष्मद्’ शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'अम्' प्रत्यय है। 'डेप्रथमयोरम् (७।१।२८) से 'अम्' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से इस 'अम्' एकवचन विभक्ति परे होने पर 'युष्मद्' के स्थान में त्व' आदेश होता है। द्वितीयायां च' (७।२।८७) से 'युष्मद्' के अन्त्य दकार को आकार आदेश होता है। अस्मद् शब्द से-माम्। (२) त्वया। यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'टा' प्रत्यय है। योऽचिं' (७।२।८९) से 'युष्मद्' के दकार को यकार आदेश होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। 'अस्मद्' शब्द से-मया। (३) त्वत् । यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् ‘डसि' प्रत्यय है। 'एकवचनस्य च (७।१।३२) से इस पञ्चमी विभक्ति के एकवचन 'डसि' के स्थान में 'अत्' आदेश होता है। शेष सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-मया । (४) त्वयि । यहां युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् डि' प्रत्यय है। इस एकवचन 'डि' विभक्ति के परे होने पर योऽचि' (७।२।८९) से 'युष्मद्' के दकार को यकार आदेश होता है। सूत्र-कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-मयि । त्व-मौ (२०) प्रत्ययोत्तरपदयोश्च ।६८ । प०वि०-प्रत्यय-उत्तरपदयो: ७ ।२ च अव्ययपदम् । स०-प्रत्ययश्च उत्तरपदं च ते प्रत्ययोत्तरपदे, तयो:-प्रत्ययोत्तरपदयो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, विभक्तौ, युष्मदस्मदो:, मपर्यन्तस्य, त्वमौ, एकवचने इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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