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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् १६० कि पञ्चमी, चतुर्थी, षष्ठी और प्रथमा विभक्ति के द्विवचनों को छोड़कर अन्य विभक्तियां शेष हैं। वहां युष्मद् और अस्मद् के अन्त्य अल् (द्) का लोप होता है। सिद्धि - (१) त्वम् । युष्मद्+सु । त्व अद्+अम्। त्व अ०+अम्। त्व+अम्। त्वम् । यहां 'युष्मद्' शब्द से 'स्वौजस ० ' ( ४ |१| २ ) से 'सु' प्रत्यय है । 'ङेप्रथमयोरम्' ( ७ 1१।२८) से सु' के स्थान में 'अम्' आदेश होता है। इस सूत्र से इस शेष विभक्ति सु (अम् ) परे होने पर 'युष्मद्' के अन्त्य अल् (द्) का लोप होता है। वाह (७/२/१४) से युष्मद् के म- पर्यन्त के स्थान में 'त्व' आदेश, 'अतो गुणे' (६ |१/९६) से पररूप एकादेश और 'अमि पूर्व:' ( ६ । १ । १०५ ) से पूर्वसवर्ण एकादेश होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से अहम् । (२) यूयम् । यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'जस्' प्रत्यय है। 'यूयवयो जर्सि' (७/२/९३) से युष्मद् के म- पर्यन्त के स्थान में यूय' आदेश होता है। शेष सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - वयम् । (३) तुभ्यम् | यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् ङे' प्रत्यय है। तुभ्यमह्यौ ङयि (७/२/९५ ) से युष्मद् के स्थान में 'तुभ्य' आदेश होता है। शेष सूत्र- कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - मह्यम् । (४) युष्मभ्यम्। यहां युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'भ्यस्' प्रत्यय है। 'भ्यसोऽभ्यम्' (७ 1१1३०) से 'भ्यस्' के स्थान में 'अभ्यम्' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - अस्मभ्यम् । (५) त्वत् । यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'ङसि' प्रत्यय है । 'एकवचनस्य च ' (७ 1१1३३) से पञ्चमी - एकवचन 'ङसि' के स्थान में 'अत्' आदेश होता है । 'त्वमावेकवचने' (७/२/९७) से 'युष्मद्' के म- पर्यन्त के स्थान में 'त्व' आदेश है। शेष सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-मत् । (६) युष्मत् । यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'भ्यस्' प्रत्यय है। 'पञ्चम्या अत् (७ 1१1३१) से पञ्चमी-विभक्ति के 'भ्यस्' के स्थान में 'अत्' आदेश होता है। शेष सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - अस्मत् । (७) तव। यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'ङस्' प्रत्यय है । युष्मदस्मद्भ्यां ङसोऽश्' (७ 1१12७) से 'ङस्' के स्थान में 'अश्' आदेश और 'तवममौ ङ' (७/२/९६ ) से युष्मद् के स्थान में 'तव' आदेश होता है। शेष सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से मम । (८) युष्माकम् | यहां 'युष्मद्' शब्द से पूर्ववत् 'आम्' प्रत्यय है। 'आमि सर्वनाम्नः सुट् (७ 1१/५२ ) से इसे 'सुट्' आगम होकर 'साम्' रूप होता है। 'साम आकम्' (७ 1१1३३) से 'साम्' के स्थान में 'आकम्' आदेश होता है। शेष सूत्र कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से - अस्माकम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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