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________________ १८३ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः अनु०-अङ्गस्य, सार्वधातुके, अत:, इय इति चानुवर्तते। अन्वय:-अतोऽङ्गात् सार्वधातुकस्य ङित आत इयः । अर्थ:-अकारान्तादगाद् उत्तरस्य सार्वधातुकस्य ङिदवयवस्याऽऽकारस्य स्थाने इय आदेशो भवति । उदा०-तौ पचेते। युवां पचेथे। तौ पचेताम् । युवां पचेथाम् । तौ यजेते। युवां यजेथे। तौ यजेताम् । युवां यजेथाम् । आर्यभाषा: अर्थ-(अत:) अकारान्त (अङ्गात्) अङ्ग से परे (सार्वधातुकस्य) सार्वधातुक-संज्ञक (डित:) डित्-प्रत्यय के अवयवभूत (आत:) आकार के स्थान में (इय:) इय आदेश होता है। ___ उदा०-तौ पचेते। वे दोनों पकाते हैं। युवां पचेथे। तुम दोनों पकाते हो। तौ पचेताम् । वे दोनों पकायें। युवां पचेथाम् । तुम दोनों पकाओ। तौ यजेते। वे दोनों यज्ञ करते हैं। युवां यजेथे। तुम दोनों यज्ञ करते हो। तौ यजेताम्। वे दोनों यज्ञ करें। युवां यजेथाम् । तुम दोनों यज्ञ करो। सिद्धि-पचेते। पच्+लट् । पच्+ल् । पच्+शप्+आताम्। पच्+अ+आताम् । पच्+अ+इय् ताम्। पच+अ+इ०ते। पचेते। यहां 'डुपचष् पाके' (भ्वा०30) धातु से वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) से 'लट्' प्रत्यय और लकार के स्थान में तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से 'आताम्' आदेश है। कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से सार्वधातुक तथा डित् 'आताम्' प्रत्यय के 'आ' को 'इय' आदेश होता है। 'सार्वधातुकमपित्' (१।२।४) से आताम् प्रत्यय डिद्वत् है। टित आत्मनेपदानां टेरे' (३।४।७९) से आताम् के टि-भाग (आम्) को 'ए' आदेश होता है। ऐसे ही आथाम् प्रत्यय में-पचेथे। पचेताम्, पचेथाम् ये लोट् लकार के प्रयोग हैं। लोटो लङ्वत् (३।४।८५) से लोट् को लङ्वद्भाव होने से पूर्ववत् टि-भाग (आम्) को 'ए' आदेश नहीं होता है। 'यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (भ्वा०उ०) धातु से-यजेते आदि प्रयोग सिद्ध करें। मुक-आगमः (४) आने मुक् ।८२। प०वि०-आने ७।१ मुक् १।१। अनु०-अङ्गस्य, अत इति चानुवर्तते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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