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________________ १७२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् इडागम-विकल्प: (३४) विभाषा गमहनविदविशाम्।६८। प०वि०-विभाषा १।१ गम-हन-विद-विशाम् ६।३ (पञ्चम्यर्थे)। स०-गमश्च हनश्च विदश्च विश् च ते गमहनविदविश:, तेषाम्गमहनविदविशाम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-अङ्गस्य, इट, वसुरिति चानुवर्तते। अन्वय:-गमहनविदविशिभ्योऽङ्गेभ्यो वसोर्विभाषा इट् । अर्थ:-गमहनविदविशिभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरस्य वसोर्विकल्पेन इडागमो भवति। ___ उदा०-(गम) जग्मिवान्, जगन्वान्। (हन) जजिवान्, जघन्वान् । (विद) विवदिवान्, विविद्वान्। (विश) विविशिवान्, विविश्वान् । आर्यभाषा: अर्थ-(गमहनविदविशिभ्यः) गम, हन, विद, विश इन (अगेभ्यः) अगों से परे (वसो:) वसु प्रत्यय को (विभाषा) विकल्प से (इट्) इडागम होता है। उदा०-(गम) जग्मिवान्, जगन्वान् । जानेवाला। (हन) जनिवान्, जघन्वान् । हिंसा,/गति करनेवाला। (विद) विवदिवान्, विविद्वान्। प्राप्त (लाभ) करनेवाला। (विश) विविशिवान्, विविश्वान् । प्रवेश करनेवाला। सिद्धि-(१) जग्मिवान् । यहां गम्लु गतौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् लिट्' और इसके स्थान में क्वसु' आदेश है। इस सूत्र से इसे इडागम होता है। 'गमहन०' (६।४।९८) सं गम् का उपधालोप होता है। विकल्प-पक्ष में इडाराम नहीं है-जगन्वान् । 'मो नो धातो:' (८।२।६४) से 'गम्' धातु के मकार को नकार आदेश होता है। ऐसे ही हन हिंसागत्योः' (अदा०प०) धातु से-जमिवान्, जघ्नवान् । 'अभ्यासाच्च (७१३।५५) से हकार को कवर्ग घकार होता है। विद्ल लाभे (तु उ०) धातु सेविविदिवान्, विविद्वान् । विश प्रवेशने (९०प०) इस धातु के साहचर्य से विदल लाभे (तु०उ०) इस लाभार्थक तौदादिक धातु का ग्रहण किया जाता है; विद ज्ञाने (अदा०प०) धातु का नहीं। इसे तो नित्य इडागम होता है-विविदिवान् । जाननेवाला। विश प्रवेशने (तु०प०) धातु से-विविशिवान्, विविश्वान् । निपातनम् (३५) सनिससनिवांसम् ।६६। प०वि०-सनिम् २।१ ससनिवांसम् २१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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