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________________ १६८ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अन्वय:-निगमे बभूथ ततन्थ जगृम्भ ववथैति निपातनम् । अर्थ:-निगमे--वेदविषये बभूध, आततन्थ, जगृम्भ, ववर्थ इत्येतानि पदानि निपात्यन्ते, अर्थात्-एतेषु क्रादिनियमात् प्राप्तस्येडागमस्याऽभावो निपात्यते। उदाहरणम्-- (१) बभूथ-त्वं हि होता प्रथमो बभूथ (तै०सं० ३।१।४।४) । बभूथ-तू हुआ। बभूविथ इति भाषायाम्। (२) आततन्थ-येनान्तरिक्षमुर्वाततन्थ (ऋ० ३।२२।२)। आततन्थ-तूने विस्तार किया। आतेनिथ इति भाषायाम् । (३) जगृम्भ-जगृम्भा ते दक्षिणमिन्द्र हस्तम् (१० १४७।१) जगृम्भ हमने ग्रहण किया। जगृहिम इति भाषायाम् । (४) ववर्थ-त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ (ऋ० १९१।९२) । ववर्थ त्वं हि ज्योतिषा (काशिका) । ववर्ध-तूने वरण किया। ववरिथ इति भाषायाम्। आर्यभाषा: अर्थ-(निगमे) वेदविषय में (बभूथ०) बभूथ, आततन्थ, जगम्भ ववर्थ (इति) ये पद निपातित हैं, अर्थात् कृसभवस्तुद्रुश्रुवो लिटि' (७।२।१३) इस क्रादि नियम से प्राप्त इडागम का अभाव निपातित है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत-भाा में लिखा है। सिद्धि-(१) बभूथ। यहां 'भू सत्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से 'परोक्षे लिट (३।२।११५) से लिट्' प्रत्यय, 'तिप्तझि० (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'सिप' आदेश और 'परस्मैपदानां णलतुसुस्' (३।४१८२) से 'सिप' के स्थान में 'थल' आदेश है। इस सूत्र से इसे कृ- आदि नियम से प्राप्त इडागम का प्रतिषेध होता है। (२) आततन्य । आपूर्वक तनु विस्तारे' (त०प०) धातु से पूवर्दत् । (३) जगम्भ । यहां ग्रह उपादाने (जया०प०) धातु से पूर्ववत् 'लिट्' प्रत्यय, लकार के स्थान में मस्' आदेश, 'परस्मैपदानां णलतुतुस्०' (३।४।८२) से 'मस्' के स्थान में 'म' आदेश है। 'अहिज्यावयि०' (६।१।१६ ) से सम्प्रसारण और वा०-- हृनहोर्भश्छन्दसि (८।२।३५) से हकार को भकार आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (४) ववर्थ। वृज वरणे' (क्या०७०) धातु से पूर्ववत् । यहां कृभवस्तुद्रुश्रुनुवो लिटि' (७।२।१३) से इडागम का प्रतिषेध प्राप्त ही था, पुन: वेद में यह नियमार्थ कथन किया गया है कि वेद में इडागम नहीं होता है, भाषा में तो होता है-ववरिथ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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