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________________ इडागम-प्रतिषेधः सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः (२९) ऋतो भारद्वाजस्य । ६३ । प०वि० - ऋत: ५।१ भारद्वाजस्य ६ । १ । अनु०-अङ्गस्य, इट्, न, तासवत्, थलि, अनिट:, नित्यम्, उपदेशे इति चानुवर्तते । अन्वयः-उपदेशे य ऋदन्यस्तासौ च नित्यमनिट् तस्माद् ऋतोऽङ्गात् १६७ थल इड् न, भारद्वाजस्य । अर्थः- उपदेशे यो ऋकारान्तस्तासौ च नित्यमनिट्, तस्माद् ऋकारान्ताद् अङ्गाद् उत्तरस्य थलस्तास्वद् इडागमो न भवति, भारद्वाजस्याऽऽचार्यस्य मतेन । उदा०- ( स्मृ) स्मर्ता - सस्मर्थ । ( ध्व ) ध्वर्ता - दध्वर्थ । आर्यभाषाः अर्थ- (उपदेशे) पाणिनीय धातुपाठ के उपदेश में जो धातु ऋकारान्त है और तासि प्रत्यय परे होने पर ( नित्यम् - अनिट् ) नित्य - अनिट् है उस (ऋत:) ऋकारान्त (अङ्गात्) अङ्ग से परे (थल: ) थल् प्रत्यय को (इट) इडागम (न) नहीं होता है (भारद्वाजस्य ) भारद्वाज आचार्य के मत में । उदा०-(स्मृ) स्मर्ता-सस्मर्थ । तूने चिन्ता (स्मरण) की। (ध्वृ) ध्वर्ता-दध्वर्थ । तूने हूर्छा (कुटिलता ) की । सिद्धि-सस्मृथ । यहां 'स्मृ चिन्तायाम्' (भ्वा०प०) इस ऋकारान्त धातु से पूर्ववत् 'लिट्' प्रत्यय, तिप्' आदेश और तिप्' के स्थान में 'थल्' आदेश है। इस सूत्र से इसे भारद्वाज आचार्य के मत में इडागम नहीं होता है। ऐसे ही 'ध्व हूर्च्छनें' (भ्वा०प०) धातु से-दध्वर्थ । Jain Education International विशेषः भारद्वाज आचार्य के मत में केवल ऋकारान्त धातुओं से परे थल् को इडागम नहीं होता है. अन्यत्र तो होता है- ययिथ, पेचिथ, शेकिथ । इस प्रकार पूर्वोक्त दोनों सूत्रों में विकल्प - विधान हो जाता है। निपातनम् (३०) बभूथाततन्थजगृम्भववर्थेति निगमे । ६४ । प०वि०- बभूथ क्रियापदम् आततन्थ क्रियापदम् जगृम्भ क्रियापदम्, ववर्थ क्रियापदम्, इति अव्ययपदम् निगमे ७ । १ । अनु०-अङ्गस्य, इट्, न इति चानुवर्तते । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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