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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
सिद्धि-ययाथ। यहां 'या प्रापणे' (अदा०प०) इस अजन्त, नित्य अनिट् धातु से 'परोक्षे लिट्' (३ ।२ ।११५ ) से 'लिट्' प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'सिप्' आदेश और 'परस्मैपदानां णलतुसुस्०' (३।४।८२) से सिप्' के स्थान में 'थल्' आदेश है। इस सूत्र से इसे तास्-प्रत्यय के समान इडागम नहीं होता है।
ऐसे ही- 'चिञ् चयनें' (स्वा० उ० ) धातु से - चिचेथ। ' णीञ् प्रापणे' (भ्वा० उ० ) धातु से-निनेथ। हु दानादनयो:, आदाने चेत्येके' (जु०प०) धातु से - जुहोथ । इडागम-प्रतिषेधः
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(२८) उपदेशेऽत्वतः । ६२ ।
प०वि० - उपदेशे ७।१ अत्वत: ५।१।
स०-अत् (अकारः) अस्मिन्नस्तीति अत्वान्, तस्मात्-अत्वतः ( बहुव्रीहि: ) ।
अनु० - अङ्गस्य, इट्, न तास्वत् थलि अनिटः, नित्यमिति चानुवर्तते ।
अन्वयः-उपदेशे योऽत्ववान् तासौ नित्यम् अनिट्, तस्माद् अत्वतोऽङ्गात् थलस्तासवद् इड् न ।
अर्थ:-उपदेशे यो धातुरकारवान्, तासौ च नित्यम् अनिट्, तस्माद् अकारवतोऽङ्गाद् उत्तरस्य थलस्तास्वद् इडागमो न भवति ।
उदा०- (पच) पक्ता - पपक्थ। (यज) यष्टा - इयष्ठ । ( शक्लृ ) शक्ता- शशक्थ |
आर्यभाषाः अर्थ-( उपदेशे) पाणिनीय धातुपाठ के उपदेश में जो धातु अकारवाली है और तासि प्रत्यय परे होने पर ( नित्यम् अनिट् ) नित्य-अनिट् है उस (अत्वतः) अकारवाले (अङ्गात्) अङ्ग से परे (थलः) थल् प्रत्यय को (इट् ) इडागम (न) नहीं होता है।
उदा०- ( पच) पक्ता - पपक्थ | तूने पकाया । (यज) यष्टा - इयष्ठ | तूने यज्ञ किया। (शक्लृ) शक्ता-शशक्थ । तू समर्थ हुआ।
सिद्धि-पपक्थ । यहां 'डुपचष् पार्क' (स्वा० उ० ) इस अकारवान् धातु से परोक्षे लिट् ' (३ ।२ ।११५) से 'लिट्' प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लकार के स्थान में 'सिप्' आदेश और 'परस्मैपदानां णलतुसुस्०' (३।४।८२) से सिप्' के स्थान में 'थल्' आदेश है। इस सूत्र से इसे तास्-प्रत्यय के समान इडागम नहीं होता है।
ऐसे ही 'यज देवपूजासङ्गतिकरणदानेषु' (भ्वा०3०) धातु से - इयष्ठ । शक्लृ शक्तौ (स्वा०प०) धातु से - शशक्थ ।
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