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________________ सप्तमाध्यायस्य द्वितीयः पादः १६६ इडागम-विकल्प: (३१) विभाषा सृजिदृशोः ।६५ । प०वि०-विभाषा ११ सृजि-दृशो: ६।२ (पञ्चम्यर्थे)। स०-सृजिश्च दृश् च तौ सृजिदृशौ, तयो:-सृजिदृशोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-अगस्य, इट, न, थलि इति चानुवर्तते । अन्वय:-सृजिदृशिभ्याम् अगाभ्यां थलो विभाषा इड् न । अर्थ:-सृजिदृशिभ्याभङ्गाभ्याम् उत्तरस्य थलो विकल्पेन इडागमो न भवति। उदा०-(सृजि) त्वं सत्रष्ठ, ससर्जिथ। (दृशि) त्वं दद्रष्ठ, ददर्शिथ । आर्यभाषा: अर्थ- (सृजिदृशिभ्याम्) सृजि, दृशि इन (अङ्गानाम्) अगों से परे (थल:) थल् प्रत्यय को (विभाषा) विकल्प से (इट) इडागम (न) नहीं होता है। उदा०-(सजि) त्वं सस्रष्ठ, ससर्जिथ। तूने सृष्टि की। (दशि) त्वं दद्रष्ठ, ददर्शिथ । तूने दर्शन किया। सिद्धि-(१) सस्रष्ठ । यहां सृज विसर्गे' (तु०प०) धातु से पूर्ववत् लिट्, सिम् आदेश और इसके स्थान में 'थल' आदेश है। इस सूत्र से इसे इडागम का प्रतिषेध होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-ससर्जिथ। कृसभवः' (७।२११३) इस क-आदि नियम से नित्य इडागम प्राप्त था, अत: इस सूत्र से विकल्प-विधान किया गया है। (२) दद्रष्ठ। यहां 'दशिर प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् 'थल' प्रत्यय है। इस सूत्र से इडागम का प्रतिषेध होता है। सृजिदृशोझल्यमकिति' (६।१।५८) ते अम्' आगम और द्रश्चभ्रस्ज० (८१२।३६) से शकार को षत्व होता है। विकल्प-पक्ष में इडागम है-ददर्शिथ। विशेष: 'नवेति विभाषा' (१1१1४४) से निषेध और विकल्प की विभाषा संज्ञा की गई है अत: प्राप्त-विभाषा में न' से निषेध होकर वा' से विकल्प किया जाता है। इडागम:-- (३२) इडत्त्यर्तिव्ययतीनाम् ।६६ । प०वि०-इट् १:१ अत्ति-आर्ते-व्ययतीनाम् ६ १३ (पञ्चम्यर्थे)। स०-अत्तिश्च अर्तिश्च व्ययतिश्च ते-अत्यर्तिव्ययतयः, तेषाम्-- अत्यतिव्ययतीनाम् (इतरेतरयोगद्वन्दः) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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